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धारा 34 कब लगती है | धारा 34 आईपीसी क्या है | धारा 34 में क्या सजा है | When does section 34 apply | what is section 34 ipc | What is the punishment in section 34

धारा 34 कब लगती है | धारा 34 आईपीसी क्या है | धारा 34 में क्या सजा है | When does section 34 apply | what is section 34 ipc | What is the pu...

धारा 34 कब लगती है | धारा 34 आईपीसी क्या है | धारा 34 में क्या सजा है | When does section 34 apply | what is section 34 ipc | What is the punishment in section 34


कार्य सामान्य आशय को अग्रसर करने के लिए किया गया हो –

धारा 34 का सबसे महत्वपूर्ण तत्व यह है कि अपराध कार्य उन व्यक्तियों के सामान्य आशय को अग्रसर करने के लिए किया गया हो, जो उस अपराध में शामिल हों । इसे कतिपय निर्णीत-वादों के उदाहरणों से अधिक स्पष्ट किया जा सकता है ।

तेजराम बनाम राज्य (1980) (Tejram Vs State(1980)) के मामले में अभियुक्तों ने मृतक पर तेज धारवाले हथियारों तथा लाठियों से हमला किया । एक अभियुक्त के पास तेज धारवाला हथियार था जबकि दूसरे के पास केवल लाठी थी । मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार हत्या धारदार हथियार के प्रहार से हुई थी लेकिन चूँकि दूसरे अभियुक्त ने सामान्य आशय को अग्रसर करने के लिए हमला किया था, अतः उसे भी प्रथम अभियुक्त के साथ भा०द० सं० की धारा 302/34 के अन्तर्गत हत्या के लिए दोषी ठहराया गया ।

मित्थू सिंह बनाम पंजाब राज्य(2001) (Mithu Singh Vs. State of Punjab(2001)) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि धारा 34 के अन्तर्गत अभियुक्तों के सामान्य सुझाव का उनके कृत्यों या आचरण द्वारा अनुमान लगाया जा सकता है । इस वाद में अभियुक्त सह अभियुक्त के साथ मृतक के घर गया था । केवल इस आधार पर कि उसे यह ज्ञात था कि सह अभियुक्त पिस्तौल लिए हुए है तथा उसकी मृतक के साथ वैमनस्य और शत्रुता है, यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि अभियुक्त का भी सह-अभियुक्त के साथ मृतक की हत्या करने का सामान्य आशय था ।

अभियुक्त के पास भी पिस्तौल का होना यह धारणा बनाने के लिए पर्याप्त कारण नहीं माना जा सकता कि वह सह-अपराधी के साथ मृतक के घर हत्या करने के सामान्य आशय से पहुँचा था । अतः अभियुक्त को धारा 302/34 के अपराध से दोषमुक्त करते हुए न्यायालय ने उसे केवल आयुध अधिनियम, 1959 की धारा के अन्तर्गत बिना लाइसेंस के आयुध रखने के लिए दोषी माना तथा अपील अंशतः स्वीकार की ।

कोई कार्य सामान्य आशय को अग्रसर करता है या नहीं, यह सामान्य आशय और कार्य की प्रकृति पर निर्भर करेगा । यह एक ऐसा तथ्य सम्बन्धी प्रश्न है जो आपराधिक घटना की परिस्थितियों पर निर्भर करता है ।

इस सन्दर्भ में शंकरलाल बनाम गुजरात राज्य (1965)( Shankarlal Vs. State of Gujarat (1965)) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिकथन किया कि धारा 34 में कथित अपराध एक से अधिक व्यक्तियों की संयुक्तता या मेल से किये गए कार्य का परिणाम होता है; यदि परिणाम की प्राप्ति सामान्य आशय को अग्रसर करने से हुई हो, तो प्रत्येक व्यक्ति उसी प्रकार दायित्वाधीन होगा मानो कि अपराध उसने स्वयं ने किया हो ।

उदाहरणार्थ,

यदि चार व्यक्तियों का सामान्य आशय 'अ' की हत्या करना हो, तो उन्हें इस पूर्व-नियोजित कार्य को अग्रसर करने के लिए अनेक कार्य करने होंगे ताकि वे हत्या करने में सफल हो सकें । अतः यदि इन चार व्यक्तियों में से एक 'अ' के मकान में घुसने का प्रयत्न करता है और पहरेदार द्वारा अन्दर प्रवेश करने से रोके जाने पर उसे गोली मार देता है, तो धारा 34 लागू होगी क्योंकि 'अ' को मारने के सामान्य आशय को अग्रसर करने में ही पहरेदार को गोली मारी गई है । इसी प्रकार एक उदाहरण में अभियुक्तों में से एक व्यक्ति 'अ' के शयन कक्ष में उसे मार डालने के इरादे से घुसता है किन्तु वहाँ 'अ' की बजाय कोई अन्य व्यक्ति सोया है । अभियुक्त द्वारा उस सोये हुए व्यक्ति को 'अ' समझकर गोली मार दी जाती है, परिणामस्वरूप वह व्यक्ति मर जाता है । यह हत्या का कार्य 'अ' की हत्या के सामान्य आशय की अभिवृद्धि में ही हुआ है, अतः इस मामले में धारा 34 लागू होगी ।

धन्ना बनाम मध्य प्रदेश राज्य(1996)( Dhanna Vs. State of Madhya Pradesh(1996)) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया कि यदि आरोप में स्पष्ट रूप से धारा 34 उल्लिखित नहीं की गई हो तथा धारा 34 का उल्लेख न किये जाने से अभियुक्त की प्रतिरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता हो, तो अभियुक्त को धारा 34 की सहायता से अपराध के लिए दोषी ठहराकर उसे दोषसिद्ध किया जा सकता है ।

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