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अपराध के चरण | अपराधों का वर्गीकरण | Stages of an offence | Stages of an Crime

अपराध के चरण | अपराधों का वर्गीकरण | S tages of an offence | S tages of an Crime अपराध के विषय मे विश्लेषण करने वाले विशेषज्ञो ने अपराध ...


अपराध के चरण |
अपराधों का वर्गीकरण | Stages of an offence | Stages of an Crime

अपराध के विषय मे विश्लेषण करने वाले विशेषज्ञो ने अपराध के चार चरण स्पष्ट किये हैं -

(1) आशय, (2) तैयारी, (3) प्रयास (4) अपराध का निष्पादन ।

आशय

कोई भी अपराध बिना आशय के नहीं होता और यदि होता भी है तो वह दुर्घटना या दुर्भाग्य के कारण क्षमा करने योग्य होता है । अतः आशय अर्थात् दुराशय (mens rea) अपराध का प्रथम चरण है क्योंकि किसी भी अपराध को करने के लिए अपराधी सबसे पहले उसे करने  का इरादा करता है । लेकिन आशय मात्र से अपराध नहीं हो जाता, जब तक उसे किसी न किसी सीमा तक कार्यान्वित न किया गया हो ।

तैयारी

किसी अपराध का इरादा करने वाले व्यक्ति को उसके क्रियान्वित करने की तैयारी के लिए प्रेरित करता है । उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति अपने शत्रु को हानि पहुँचाने के लिए उसके घर में आग लगाने का आशय रखता है, तो स्वाभाविक है कि वह इस हेतु माचिस, पेट्रोल, मिट्टी का तेल, कपड़े के तुकडे आदि इकट्ठा करने की तैयारी करेगा, ताकि वह अपने कार्य को कार्यान्वित कर सके । तैयारी मात्र से व्यक्ति को अपराधी नहीं माना जा सकता, जब तक कि वह उस कृत्य को किसी न किसी सीमा तक पुरा करने का प्रयास न करे । अत: यदि आग लगाने की नीयत से कोई व्यक्ति माचिस, पेट्रोल आदि अपने पास रखे तथा उस मकान के पास टहलता पाया जाए जहाँ वह आग लगाना चाहता है, तो भी उसे तब तक दोषी नहीं माना जाएगा, जब तक वह माचिस को न सुलगा ले ।

प्रयास

अपराध का तीसरा मुख्य चरण प्रयास है । प्रयास शुरू करते ही अपराध प्रारम्भ हो जाता है चाहे भले ही प्रयास पूरा हो सके या न हो सके या उसमें सफलता मिले या न मिले । अत: इस उदाहरण में कपड़े के तुकडे को पेट्रोल से भिगोकर माचिस की काड़ी सुलगाना आगजनी का प्रयास माना जाएगा, जिसके लिए अपराधी को दण्डित किया जा सकेगा । प्रयास के सम्बन्ध में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 511 (Indian Penal Code Section 511) में विस्तृत वर्णन किया गया है ।

निष्पादन

अपराध की घटना का यह अन्तिम चरण है जिसमें अपराध कृत्य को क्रियान्वित किया जाता है ।

अपराध के उपर्युक्त चार चरणों को इस उदाहरण द्वारा और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है । किसी कम्पनी के एक कर्मचारी के मन में कम्पनी के माल को गबन कर उसके बेचने से धन कमाने की लालसा आयी और वह ऐसा करने का इरादा (आशय) रखता है । यह उसके अपराध का प्रथम चरण है जिसे अपराध नहीं माना जाएगा ।

अब वह कर्मचारी उस माल को कम्पनी से निकालने के लिए चौकीदार से सहायता हेतु बातचीत करता है । यह उस अपराध की तैयारी है, जो स्वय मे दण्डनीय नहीं है ।

इसके बाद वह कर्मचारी चौकीदार की मदद से उस माल को कम्पनी के स्थान से बाहर निकालकर किसी दुसरी जगह बेचने के लिए ले जाता है लेकिन चुंगी नाके पर पकड़ा जाता है । यह अपराध का प्रयास होने के कारण उस व्यक्ति को अपराधी माना जाएगा तथा उसे दण्डित किया जा सकेगा ।

यदि कर्मचारी चुंगी नाके पर पकड़ा न जाता और माल को तय स्थान पर ले जाकर बेच देता तो यह अपराध का अन्तिम चरण कहलाता, क्योंकि उसने अपने अपराध को पूर्णतः कार्यान्वित कर दिया होता । अत: इस स्थिति में अपराध पूर्ण हो जाने के परिणामस्वरूप उसे दण्डित किया जा सकता था ।

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