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Murder Case Section | Saravanan Vs State of Pondicherry | Nagarathinam and others Vs State

Murder Case Section | Saravanan Vs State of Pondicherry | Nagarathinam and others Vs State सरवानन बनाम पांडिचेरी राज्य (सन 2005) (Sarava...

Murder Case Section | Saravanan Vs State of Pondicherry | Nagarathinam and others Vs State


सरवानन बनाम पांडिचेरी राज्य (सन 2005) (Saravanan Vs State of Pondicherry (2005)) के मामले में दो अभियुक्त व्यक्तियों ने सड़क पर जा रहे तीन व्यक्तियों से झगड़ा किया । इन व्यक्तियों ने अभियुक्तों द्वारा किए गए झगड़े व हमले को अनदेखा कर आगे बढ़ गए ।

अभियुक्तों ने उनका पीछा किया और पुनः झगड़ा किया । हिंसा का प्रयोग किया गया तथा मृतक को क्षतियाँ कारित की, जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई ।

चिकित्सीय साक्ष्य के अनुसार मृतक के सिर में हुई क्षति प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त थी ।

उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया कि इस मामले में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 लागू होती है क्योंकि यह सामान्य आशय को अग्रसर करने में आपराधिक कार्य करने का स्पष्ट मामला है ।

अतः अभियुक्तगण धारा 304 भाग 2 सहपठित धारा 34 के अधीन दण्डनीय अपराध के लिए सिद्धदोष किये जाकर दण्डित किए गए ।



नागरथीनम तथा अन्य बनाम राज्य (सन 2006) (Nagarathinam and others Vs State (2006)) के वाद में गाँव के रहिवासी दो गुटों में बँटे हुए थे तथा दोनों गुटों में आपस में वैमनस्य था । अभियोजन के साक्षीगण गाँव की पंचायत के मुखिया के समर्थक थे । विरोधी गुट के लोगों (अभियुक्तगण) के विरुद्ध आरोप था कि उन्होंने स्थानीय मन्दिर के लेखाओं में हेराफेरी की थी । वे एक ईंट की भट्टी भी चला रहे थे और पंचायत का मुखिया इसमें हिस्सा चाहता था, जो न मिलने पर उसने अभियुक्तों के विरुद्ध अवैध रूप से ईंटों की भट्टी चलाने के आरोप में कड़ा जुर्माना लगाया । जुर्माना न भरा जाने पर उसने गाँव में डिडोरी पीटकर अभियुक्तगणों को पंचायत सभा में बुलाया तथा मन्दिर का हिसाब न देने के लिए उन्हें प्रताड़ित किया ।

अभियोजन पक्ष का आरोप था कि सभा के दौरान एक अभियुक्त ने झगड़ना शुरू कर दिया और मुखिया को अपशब्द कहे । उन पर यह भी आरोप था कि उन्होंने पास की चाय की दूकान के सामने एक के बाद दूसरे, ऐसे दो व्यक्तियों की हत्या कर दी ।

परन्तु न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के कथन को इन कारणों से अविश्वसनीय माना क्योंकि (1) घटना स्थल पर अनेक लोगों की मौजूदगी में हत्या कारित की जाना संभव प्रतीत नहीं होता था, (2) यह पूर्णत: साबित किया जा चुका था कि सभी अभियुक्तगण पूर्णतः निहत्थे थे तथा उनमें से किसी के भी पास कोई हथियार नहीं था, (3) अभियुक्तों के शरीर पर कोई चोट के निशान नहीं पाये गये थे और बिना किसी प्रकोपन के उनके द्वारा हत्या कारित की जाना विश्वसनीय प्रतीत नहीं होना था ।

अभियुक्तों में से एक के विरुद्ध यह आरोप था कि उसने पास की दूकान से चाकू उठाकर मृतकों पर वार किया परन्तु कथित चाकू न्यायालय के समक्ष प्रेषित नहीं किया गया था । मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह उल्लेख था कि उनकी मृत्यु सम्भवतः गिरने के कारण चोट लगने से हुई थी ।

कुल मिलाकर न्यायालय ने पाया कि तथ्यों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अभियोजन अपना पक्ष साबित करने में पूर्णतः विफल रहा था । यह सम्भव था कि अभियुक्तों ने निजी प्रतिरक्षा में मृतकों को चोट कारित की हो जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई हो । अतः यदि यह मान भी लिया जाए कि इस घटना के लिए अभियुक्तगणों में से एक या दो अभियुक्त व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार थे, तो उस स्थिति में धारा 34 के उपबन्ध लागू नहीं होंगे । इस वाद में अभियुक्तों का सामान्य आशय साबित नहीं हो सकने के कारण न्यायालय द्वारा सभी की दोषमुक्ति कर दी गई और अपील स्वीकार की गई ।

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