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धारा 25 क्या है | Section 25 IPC

धारा 25 क्या है | Section 25 IPC कोई व्यक्ति किसी बात को कपटपूर्वक करता है, यह उसे कपटपूर्ण कहा जाता है, यदि वह उस बात को कपट करने के आश...

धारा 25 क्या है | Section 25 IPC


कोई व्यक्ति किसी बात को कपटपूर्वक करता है, यह उसे कपटपूर्ण कहा जाता है, यदि वह उस बात को कपट करने के आशय से करता है, अन्यथा नहीं ।

यह निर्धारित करने के लिए कि कार्य धारा 24 के अन्तर्गत बेईमानी से किया गया था या धारा 25 के अधीन कपटपूर्वक, उसे कारित किये जाने का आशय जानना अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है ।

यदि कोई कृत्य धोखा देने के आशय से किया गया है तभी उसे कपटपूर्वक किया गया माना जाएगा जैसा कि धारा 25 में दी गई 'कपट' की परिभाषा से ही स्पष्ट है ।

कोई कृत्य कपटपूर्वक है अथवा नहीं, यह जानने के लिए उस कृत्य को करने वाले व्यक्ति का आशय महत्वपूर्ण स्थान रखता है ।

यद्यपि दण्ड संहिता में 'कपट' (fraud) तथा कपटवंचन (defraud) को परिभाषित नहीं किया गया है फिर भी कपटवंचन का अर्थ कपट शब्द के सन्दर्भ में ही निर्धारित किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें किसी व्यक्ति को सम्पत्ति से वंचित करना आशयित हो सकता है और नहीं भी हो सकता ।

इस सन्दर्भ में सर जेम्स स्टीफेन ने अभिकथन किया है कि जहाँ किसी अपराध की परिभाषा में शब्द 'कपट' या 'कपटपूर्वक' प्रयुक्त हुआ है, उस अपराध के कारित होने के लिए कम से कम इन दो तत्वों का होना आवश्यक है –

(1) धोखा या धोखा देने का आशय या कुछ मामलों में केवल गोपनीयता या छिपाव, तथा

(2) वास्तविक क्षति या सम्भावित क्षति अथवा किसी व्यक्ति को वास्तविक या सम्भावित क्षति के जोखिम में डालने का आशय

उच्चतम न्यायालय ने डा. विमला देवी बनाम दिल्ली प्रशासन के वाद में अभिनिर्धारित किया कि 'कपट' में दो तत्वों का समावेश है-(1) धोखा, तथा (2) जिस व्यक्ति के प्रति कपट किया गया है उसे क्षति । यह आवश्यक नहीं है कि क्षति आर्थिक ही हो, वह मानसिक, प्रतिष्ठा से सम्बन्धित या अन्य किसी प्रकार की भी हो सकती है । अनेक मामलों में कपट करने वाले व्यक्ति को कोई लाभ नहीं होता, किन्तु उस व्यक्ति को हानि होती है जिसके प्रति कपट किया गया है ।

इस वाद में अपीलार्थी ने अपनी अवयस्क पुत्री नलिनी के नाम एक आस्टिन कार खरीदी और उसके नाम से बीमा पालिसी हस्तांतरित कर दी । तत्पश्चात् उक्त कार के साथ दो दुर्घटनाएँ (accidents) हुईं जिसके लिए अपीलार्थी ने बीमा कंपनी को दो पृथक् दावे प्रस्तुत किये जिनसे सम्बन्धित सभी कागजातों पर उसने नलिनी नाम से हस्ताक्षर किये जब कि वास्तव में उसका नाम विमला था । इस प्रकार उसने कपट द्वारा बीमा कंपनी को यह विश्वास करने के लिए बाध्य किया कि उसका नाम नलिनी था । परन्तु उसने यह कपटपूर्ण कार्य न तो स्वयं को कोई अनुचित लाभ पहुँचाने की नियत से किया था और न इससे बीमा कंपनी को किसी प्रकार की हानि ही हुई थी । अतः अभियोक्त्री (अपीलार्थी) को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 467 एवं 468 के अधीन कपट के लिए दोषसिद्ध नहीं किया जा सका और उसे दोषमुक्त करते हुए उसकी अपील स्वीकार कर ली गई ।

डॉ. एस. दत्त बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के वाद में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति ने कोई कार्य कपटपूर्वक किया है तब कहा जाएगा जब वह उस कार्य को कपट करने के आशय से करता है न कि अन्यथा । अतः स्पष्ट है कि कपट का आशय किसी व्यक्ति को कोई कार्य करने या कार्य लोप करने के लिए उत्प्रेरित करना होना चाहिए जो उस व्यक्ति के लिए अलाभकारी है । सारांश यह कि केवल कपट का आशय रखना मात्र इस धारा के अधीन अपराध नहीं माना जाएगा ।

आशय यह है कि केवल धोखा देना मात्र 'कपट' नहीं है जब तक कि वह कार्य रूप में परिणित न हुआ हो । जहाँ एक ओर यह आवश्यक नहीं है कि कपट के परिणामस्वरूप कोई व्यक्ति सम्पत्ति से वंचित रखा गया हो या उसे सम्पत्ति से वंचित रखने का आशय अन्तर्निहित हो वहाँ दूसरी ओर यह भी आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक आशययुक्त भुलावा धारा 25 के अर्थ में 'कपट' होगा ।

यह सच है कि प्राय: कपटपूर्ण कार्य बेईमानी से किये गए होते हैं परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक कपटपूर्ण कार्य बेईमानी का काम हो ।

उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति जाली प्रमाण-पत्र का प्रयोग इसलिए करता है ताकि उसे परीक्षा में प्रवेश प्राप्त हो जाए क्योंकि वह जानता है कि बिना प्रवेश-पत्र के उसे परीक्षा में बैठने नहीं मिल सकता है । यहाँ उसने कपटपूर्वक कार्य किया है तथा उसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 471 के अन्तर्गत सिद्धदोष किया जा सकेगा ।

कपट का आशय साबित करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि किसी व्यक्ति के प्रति कपट किया ही गया हो या किसी व्यक्ति के प्रति कपट होने की सम्भावना रही हो । अतः कोई व्यक्ति कपट करने का आशय रख सकता है लेकिन ऐसा हो सकता है कि उसके कपट का शिकार कोई व्यक्ति न हो ।

सुरेन्द्रनाथ बनाम सम्रा के बाद में अभियुक्त ने एक दस्तावेज के निष्पादन का पंजीकरण के पश्चात् अनुप्रमाणक साक्षी (attesting witness) के रूप में उस दस्तावेज पर अपना नाम व हस्ताक्षर किये यद्यपि विधि के अनुसार अनुप्रमाणन आवश्यक नहीं था । न्यायालय ने धारित किया कि अभियुक्त कूटकरण (forgery) का दोषी नहीं था क्योंकि उसका कार्य न तो कपटपूर्वक किया गया था और न बेईमानी से ।

बेईमानी और कपट में विभेद-उच्चतम न्यायालय ने डॉ. विमला देवी बनाम दिल्ली प्रशासन के वाद में पद 'बेईमानीपूर्वक' तथा 'कपटपूर्वक' में अन्तर स्पष्ट करते हुए अभिनिर्धारित किया कि कपट में धोखे का तत्व सदैव विद्यमान रहता है जबकि बेईमानी के लिए यह आवश्यक नहीं है । इसी प्रकार 'बेईमानी' में दोषपूर्ण लाभ या दोषपूर्ण हानि का तत्व होना आवश्यक है जो कपट के लिए आवश्यक नहीं है । कोई कार्य कपटपूर्ण हो सकता है यद्यपि उसमें कपट का शिकार हुए व्यक्ति को किसी प्रकार की आर्थिक हानि या नुकसानी पहुँचाने का आशय न रहा हो ।

कपट के आशय के सन्दर्भ में वी. वि. पद्मनाम राव बनाम राज्य के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि 'कपट करने का आशय से तात्पर्य यह है कि धोखा करने वाले व्यक्ति का लाभ प्राप्त करने का आशय रहा हो या उसे किसी प्रकार के लाभ की सम्भावना रही हो या किसी अन्य व्यक्ति को उसके कपटपूर्ण कृत्य से क्षति हो या क्षति सम्भावित हो ।

किसी व्यक्ति का आशय कपट करने का था, यह साबित करने के लिए आवश्यक नहीं है कि इससे किसी व्यक्ति को वास्तव में धोखा हुआ है या धोखा होने की सम्भावना थी । किसी व्यक्ति ने अन्य के साथ कपट (धोखा) करने की नीयत से कोई कृत्य किया हो लेकिन वह व्यक्ति कपट का शिकार न हुआ होने पर भी कपट करने वाले व्यक्ति को इस धारा के अन्तर्गत दोषसिद्ध किया जा सकेगा । उदाहरणार्थ, 'ख' के बैंक खाते में कोई धनराशि नहीं है लेकिन 'क' यह समझते हुए कि 'ख' के खाते में धनराशि है, 'ख' के जाली हस्ताक्षर करके पैसे निकालने की कोशिश करता है, तो उसका यह कृत्य, कपट या धोखा माना जाएगा भले ही इससे 'ख' ने धोखा न खाया हो या उसे कोई हानि न हुई हो।

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