Page Nav

HIDE

Gradient Skin

Gradient_Skin

*

latest

धारा 26 क्या है | Section 26 IPC in Hindi | जानिए, क्या है आईपीसी की धारा 26

धारा 26 क्या है | Section 26 IPC in Hindi | जानिए, क्या है आईपीसी की धारा 26 धारा 26 के अनुसार कोई व्यक्ति किसी बात के “विश्वास करने का ...

धारा 26 क्या है | Section 26 IPC in Hindi | जानिए, क्या है आईपीसी की धारा 26


धारा 26 के अनुसार कोई व्यक्ति किसी बात के “विश्वास करने का कारण" (Reason to Believe) रखता है, यह तब कहा जाता है, जब वह उस बात के विश्वास करने का पर्याप्त वजह रखता है, अन्यथा नहीं ।

सामान्य शब्दो मे जब कोई व्यक्ति किसी बात का विश्वास करने का पर्याप्त कारण रखता है, तब यह कहा जा सकेगा कि उस व्यक्ति के पास उस बात पर विश्वास करने का समुचित आधार था अन्यथा नहीं।

अतः स्पष्ट है कि किसी बात पर विश्वास रखना (Believe in Something), उस बात की जानकारी या ज्ञान रखने से भिन्न है । परन्तु विश्वास, संदेह की अपेक्षा अधिक प्रभावकारी होता है । इसे एक उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है ।

यदि कोई गरीब व्यक्ति देर रात को संदेहास्पद स्थिति में कुछ बहुमूल्य आभूषण बेचने के लिए लाता है तथा उन आभूषणों की वास्तविक मूल्य से काफी कम मूल्य पर बेचने को तैयार हो जाता है, तो यहाँ यद्यपि लेने वाले व्यक्ति को यह ज्ञान नहीं है कि वे आभूषण चोरी के हैं लेकिन उसे ऐसा विश्वास करने का पर्याप्य कारण होगा ।

रघुनाथ सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य (Raghunath Singh Vs State of Madhya Pradesh) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया कि धारा 368 के अन्तर्गत अपहरण या व्यपहरण किये गए व्यक्ति को सदोष परिरोध में रखने के अपराध के लिए यह साबित किया जाना आवश्यक है कि अभियुक्त को यह ज्ञात था कि वह व्यक्ति अपहृत या व्यपहृत किया जा चुका है ।

बलवंत सिंह बनाम आर. पी. शाह (Balwant Singh Vs R. P. Shah) के मामले में न्यायालय ने विनिश्चित किया कि यदि परिस्थितियों से ऐसा लगता है कि अभियुक्त के पास किसी बात का विश्वास करने का पर्याप्त कारण था, तो न्यायालय उसे दोषमुक्त कर सकता है, भले ही न्यायालय का निष्कर्ष इसके विपरीत रहा हो ।

धारा 26 के सन्दर्भ में उच्चतम न्यायालय द्वारा सन् 1993 में निर्णीत ज्योति प्रसाद बनाम हरियाणा राज्य (Jyoti Prasad Vs State of Haryana) का वाद उल्लेखनीय है । इस मामले में अभियुक्त के विरुद्ध दण्ड संहिता की धारा 258 व 259 के अन्तर्गत कूटकृत कोर्ट स्टाम्प बेचने का आरोप था । अभियुक्त का कथन था कि उसने ये स्टाम्प कोषालय से क्रय किये होने के कारण वह विश्वास करता था कि वे असली होंगे न कि कूटकृत। परन्तु इसकी पुष्टि में न तो उसके रजिस्टर में कोई रिकार्ड था और न उसने कोषालय से सम्बन्धित रिकार्ड बुलवाए जाने की कोशिश ही की थी । अतः उसके विश्वास के लिए कोई पर्याप्त आधार न होने के कारण उसे दिया गया तीन वर्ष का कठोर कारावास का दण्ड उचित ठहराया गया ।

न्यायालय ने निर्णय दिया कि धारा 26 के अन्तर्गत विश्वास करने का कारण एक मानसिक स्थिति का द्योतक है जिसे केवल सन्देह या शंका के समतुल्य नहीं माना जा सकता । इस मामले की परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए अभियुक्त के पास ऐसा कोई पर्याप्त कारण नहीं था, जिससे यह माना जा सके कि उसे स्टाम्पों के असली होने का विश्वास करने के लिए पर्याप्त आधार था ।

कोई टिप्पणी नहीं