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धारा 35 क्या है | धारा 35 का मतलब | Section 35 IPC in Hindi | Section 35 IPC

धारा 35 क्या है | धारा 35 का मतलब | Section 35 IPC in Hindi | Section 35 IPC जबकि ऐसा कार्य इस कारण आपराधिक है कि वह आपराधिक ज्ञान या आश...

धारा 35 क्या है | धारा 35 का मतलब | Section 35 IPC in Hindi | Section 35 IPC


जबकि ऐसा कार्य इस कारण आपराधिक है कि वह आपराधिक ज्ञान या आशय से किया गया है जब कभी कोई कार्य, जो आपराधिक ज्ञान या आशय से किये जाने के कारण ही आपराधिक है, कई व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति, जो ऐसे ज्ञान या आशय से उस कार्य में सम्मिलित होता है, उस कार्य के लिए उसी प्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य उस ज्ञान या आशय से अकेले उसी द्वारा किया गया हो ।

पूर्ववर्ती धारा 34 में यह दर्शाया गया है कि आपराधिक दायित्व के लिए यह आवश्यक है कि अपराध-कार्य सामान्य आशय की अभिवृद्धि के लिए किया गया हो । धारा 35 में संयुक्त दायित्व से सम्बन्धित एक अन्य सिद्धान्त का उल्लेख है जिसके अनुसार जब किसी अपराध को करने में किसी विशेष ज्ञान या आशय का होना पाया जाए तो उस दशा में यह साबित किया जाना आवश्यक है कि सभी सम्बन्धित अभियुक्तों को आरोपित अपराध-कार्य किये जाने की जानकारी थी अथवा उस कार्य को करने का उनका आशय था। यदि सभी अभियुक्तों के विरुद्ध यह साबित न हो सके कि उन्हें अपराध कार्य के सम्भावित परिणामों का ज्ञान था अथवा उस कार्य को करने का उनका आशय था, तो उनमें से एक के द्वारा किये गये कार्य के लिए सभी को दायित्वाधीन नहीं ठहराया जा सकता है ।

दूसरे शब्दों में, धारा 35 में यह उल्लेख है कि किसी एक व्यक्ति पर तब तक संयुक्त दायित्व अधिरोपित नहीं किया जा सकता जब तक कि अभियोजन पक्ष द्वारा यह साबित न कर दिया जाए कि उस व्यक्ति को अपराध के विषय में जानकारी थी या उसे करने का उसका आशय था ।

उदाहरणार्थ, यदि दो व्यक्ति मिलकर 'क' को पीटते हैं जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है, तो यदि यह साबित कर दिया जाता है की यदि दो व्यक्ति कि दोनों अभियुक्तों का सामान्य आशय 'क' की मृत्यु कारित करने का था, तो दोनों ही धारा 34 के अन्तर्गत संयुक्त रूप से दायित्वाधीन होंगे । परन्तु यदि अभियोजन दोनों अभियुक्तों का सामान्य आशय साबित न कर सके, तो उसे यह साबित करना होगा कि उनमें से प्रत्येक अभियुक्त को अपने कार्य के कारण 'क' की मृत्यु हो सकने की सम्भावना का ज्ञान था अथवा उनका आशय ऐसा था क्योंकि इस प्रकार के मामलों में यह सम्भव है कि उन दो अभियुक्तों में से एक 'क' की हत्या करना चाहता हो जबकि दूसरे का आशय 'क' की पिटाई करना मात्र हो।

धारा 35 ऐसे प्रत्येक कृत्य के प्रति लागू होती है जो उस कृत्य के अपराध होने की जानकारी (ज्ञान) या आशय से किया गया हो । यदि ऐसा कृत्य अनेक व्यक्तियों द्वारा किया जाए, तो प्रत्येक व्यक्ति केवल उस सीमा तक ही उत्तरदायी होगा जितना कि उसे कृत्य के सम्भावित परिणामों का ज्ञान था या उस कृत्य को करने का उसका आशय था ।

उल्लेखनीय है कि दण्ड संहिता की धारा 34, 35 व 38 वस्तुतः एक ही विषय अर्थात् संयुक्त दायित्व से सम्बन्धित हैं अतः इन्हें एक साथ पढ़ा जाना चाहिए । धारा 34 उन अपराध-कृत्यों से सम्बन्धित है जो सामान्य आशय से किये गये हों जबकि धारा 35 भिन्न-भिन्न आशयों से किये गए कार्यों से सम्बन्धित है ।

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