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IPC 326 Details | 326/34 IPC in Hindi | Rama Meru Vs State of Gujarat | Tripta Vs State of Haryana | Munna Vs State of Uttar Pradesh | Manik Das and others Vs State of Assam

IPC 326 Details | 326/34 IPC in Hindi | Rama Meru Vs State of Gujarat | Tripta Vs State of Haryana | Munna Vs State of Uttar Pradesh | Manik...

IPC 326 Details | 326/34 IPC in Hindi | Rama Meru Vs State of Gujarat | Tripta Vs State of Haryana | Munna Vs State of Uttar Pradesh | Manik Das and others Vs State of Assam


रामा मेरु बनाम गुजरात राज्य (सन 1992) (Rama Meru Vs State of Gujarat (1992)) के मामले में सात अभियुक्तों द्वारा मृतक को लाठियों, पत्थरों तथा गोली से फायर करके तथा चाकू से अनेक वार करके चोटें पहुँचाए जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई ।

चिकित्सकीय परीक्षण के अनुसार यद्यपि ये सभी चोटें मिलकर मृत्यु का पर्याप्त कारण थीं । लेकिन इनमें से प्रत्येक अलग-अलग तौर पर मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त नहीं थीं । इसके अतिरिक्त अभियोजन पक्ष मृतक पर चाकू के प्रहारों के लिए उचित साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल रहा था ।

उक्त परिस्थितियों में उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया कि मृत्यु कारित करने का सामान्य आशय निश्चयात्मक रूप से निःसंदेह सिद्ध नहीं हो सका था । अतः अभियुक्तों को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302/34 की बजाय धारा 326/34 (गम्भीर चोट) के लिए सिद्धदोष ठहराया जाना उचित था ।



तृप्ता बनाम हरियाणा राज्य (सन 1993) (Tripta Vs State of Haryana (1993)) के वाद में अभियुक्ता तृप्ता तथा उसके पति ने अपने पिता से यह शिकायत की कि उसने अपनी जमीन दूसरे पुत्र (मृतक) के परिवार को क्यों दे दी । पिता के उत्तर से क्रोधित होकर अभियुक्ता के पति ने अपने पिता पर लाठी से प्रहार किये । इसी बीच दूसरे पुत्र (मृतक) द्वारा हस्तक्षेप किया जाने पर अभियुक्ता ने उसके मुँह पर गंडासे से वार किया तथा उसके पति ने मृतक के सिर पर लाठी से दो प्रहार किये । इसके परिणामस्वरूप घटना के पन्द्रह दिनों बाद मृतक की मृत्यु हो गई ।

उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया कि घटना-क्रम को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि पति द्वारा हत्या कारित करने के आशय में अभियुक्ता का सामान्य आशय शामिल था । अतः दोनों को उनके व्यक्तिगत कृत्य के लिए दोषी ठहराया गया तथा अभियुक्ता को केवल गम्भीर चोट पहुँचाने के अपराध के लिए धारा 326/34 (भा० द० सं०) के अन्तर्गत दोषी ठहराया गया जबकि उसके पति को हत्या के लिए सिद्धदोष किया गया ।



सामान्य आशय से सम्बन्धित एक अन्य प्रकरण मुन्ना बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (सन 1993) (Munna Vs State of Uttar Pradesh (1993)) के मामले में अपीलार्थी क्र०2 यद्यपि अपने पास रेज़र (ब्लेडनुमा चाकू) रखे हुए था लेकिन उसने उसका उपयोग नहीं किया तथा उसने यह कल्पना भी नहीं की थी कि अपीलार्थी क्र० 1 चाकू से प्रहार करके मृतक की हत्या कर देगा । अतः स्पष्ट था कि अपीलार्थी क्र० 2 का इस हत्या की घटना में सामान्य आशय नहीं था तथापि अपीलार्थी क्र० 2 को यह ज्ञात था कि अपीलार्थी क्र० 1 मृतक द्वारा किये गए अपमान से क्रुद्ध तथा उत्तेजित था तथा चाकू भी रखे हुए था, अतः यह कहा जा सकता है कि उसे इस बात की संभावना की जानकारी थी कि अपीलार्थी क्र० 1 मृतक को घायल कर सकता है ।

अतः उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि अपीलार्थी क्र० 2 का अपीलार्थी क्र० 1 के साथ सामान्य आशय मृतक पर केवल हमला करने या चोट पहुँचाने तक सीमित था न कि उसकी हत्या करने हेतु । अतः उसे हत्या की बजाय केवल गम्भीर चोट पहुँचाने के लिए दोषी ठहराया गया ।



लल्लन राय बनाम बिहार राज्य(सन 2003) (Lallan Rai vs. State of Bihar (2003)) के प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया है कि भा० द० सं० की धारा 34 के लिए सामान्य आशय में सहभागी होना कानून की अपेक्षा (requirement) है । मात्र इसलिए कि अभियुक्त ने अपने आप को घटना स्थल (scene) से दूर रखा है, उसे दोषमुक्त नहीं किया जा सकता है । तथापि यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है । इस सम्बन्ध में कोई दृढ़ (steadfast) नियम प्रतिपादित नहीं किया जा सकता है ।

माणिक दास तथा अन्य बनाम असम राज्य (सन 2007) (Manik Das and others Vs State of Assam (2007)) के वाद में परिवादी ने प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराई कि दिनांक 27 दिसम्बर, 2000 को दिन के लगभग 11 बजे अभियुक्त माणिकदास ने अपने दो पुत्रों तथा दो अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर परिवादी के भाई अनिल दास पर भाले से प्राणघातक हमला किया जिसके कारण अनिल दास की अस्पताल ले जाते समय मृत्यु हो गई । अभियुक्तों के विरुद्ध धारा 302/147 भा० द० सं० के अधीन आपराधिक प्रकरण संस्थित किया गया तथा दिनांक 13 मई, 2002 को उनके विरुद्ध चालान पेश हुआ ।

दिनांक 13 नवम्बर, 2003 को जोरहट के सत्र न्यायाधीश द्वारा अभियुक्तों के विरुद्ध धारा 302/34 के अन्तर्गत विचारण प्रारम्भ किया गया । चूँकि मृतक के शरीर पर पाई गई चोटों तथा पोस्ट मार्टम रिपोर्ट, दोनों ही साक्षियों एवं चक्षुदर्शी गवाहों के बयानों की पुष्टि करती थी इसलिए विचारण न्यायालय ने पाँच में से चार अभियुक्तों की दोषसिद्धि कर दी जबकि पाँचवें अभियुक्त की घटना स्थल पर उपस्थिति मात्र के सिवाय अपराध में शामिल होने के कोई सबूत न होने के कारण उसे दोषमुक्त कर दिया गया ।

अपील में उच्च न्यायालय ने भी विचारण न्यायालय के निर्णय को बहाल रखा । उसके विरुद्ध अपील में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि अभियुक्तों के अपराध की चक्षुदर्शी गवाहों द्वारा दी गई साक्ष्य से पुष्टि होने के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध थे, अतः अपील में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं था, इस कारण अपील नामंजूर कर दी गई ।

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