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मजमूआ ताजीरात हिन्द | ताजीराते हिन्द का अर्थ । Majmua Tajirat-E-Hind

  मजमूआ ताजीरात हिन्द | ताजीराते हिन्द का अर्थ । Majmua Tajirat-E-Hind   भारतीय दण्ड संहिता को पहले "मजमूआ ताजीरात हिन्द" ( Maj...

 मजमूआ ताजीरात हिन्द | ताजीराते हिन्द का अर्थ । Majmua Tajirat-E-Hind

 


भारतीय दण्ड संहिता को पहले "मजमूआ ताजीरात हिन्द" (Majmua Tajirat-E-Hind) कहा जाता था क्योंकि भारत में न्याय व्यवस्था का संचालन अलग-अलग चरणों में अलग-अलग प्रकार से किया जाता था ।

जब भारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code) का निर्माण हुआ तब न्यायालयों में अरबो और फारसी तथा उर्दू भाषा का उपयोग किया जाता था और “मजमूआ ताजीरात हिन्द" (Majmua Tajirat-E-Hind) शब्द भी अरबी-फारसी भाषा में है जिसका वास्तविक अर्थ भारतीय दण्ड संहिता है ।

 

जब ब्रिटिश साम्राज्य भारत में पुरी तरह से स्थापित हो चुका था, तो अंग्रेज शासकों के लिये यह आवश्यक हुआ कि ब्रिटिश भारत के लिये एक निश्चित दण्ड विधि का निर्माण कराया जाये क्योंकि उस समय भारतीय न्याय व्यवस्था स्थानीय नियमों से संचालित होती थी ।

प्रत्येक रियासत के अलग-अलग दण्ड विधान थे । जहाँ हिन्दू शासकों का राज्य था वहीं पर हिन्दू दण्ड विधि का अनुसरण किया जाता था तथा जहाँ मुस्लिम शासक का राज्य था वहाँ मुस्लिम विधि के अनुसार दण्ड व्यवस्था संचालित की जाती थी ।

अंग्रेजी राज्य लगभग पूरे भारत में स्थापित हो चुका था । अतः न्याय व्यवस्था को भी उनके द्वारा संचालित किया जाना स्वाभाविक था । इसीलिए अंग्रेजी शासन में भारत की एक विस्तृत दण्ड विधि बनाये जाने पर विचार किया गया ।

 

इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये लार्ड मेकाले (Thomas Babington Macaulay) की अध्यक्षता में भारतीय दण्ड संहिता का प्रारूप तैयार किया गया जिसे सन् १८३७ में गवर्नर जनरल की कौंसिल में प्रस्तुत किया गया । लगभग बीस वर्ष बाद सन् 1860 में यह विधान के रूप में पारित हुआ ।

 

भारतीय दण्ड संहिता 1 जनवरी, 1862 को भारत में लागू की गयी ।



भारतीय दण्ड संहिता का देर से लागू होने का कारण


यह बात सही है कि यह विधान 6 अक्टूबर सन् 1860 को गवर्नर जनरल के द्वारा स्वीकृत कर दिया गया था और शासन का यह विचार भी था कि यह अधिनियम दिनांक 1-5-1861 से लागू कर दिया जाये । लेकिन फिर यह सोचा गया कि कुछ समय तक इस अधिनियम को आम लोगों और भारतीय अफसरों को समझने के लिए कुछ समय दिया जाए तथा इसे तुरन्त लागू न किया जाये क्योंकि वास्तव में यह एक ऐसा कानून था जिसके कारण पुराने जितने भी दण्ड सम्बन्धी नियम थे; उन्हें हटा दिया गया था । इसी कारण सरकार द्वारा इस अधिनियम को प्रभावशील किये जाने की तारीख बदल दी गई और यह विधान दिनांक 1-5-1861 के बजाय दिनांक 1-1-1862 को प्रभावी किया गया ।


भारतीय दण्ड विधि के पहले की स्थिति


पहले अंग्रेजी शासन होने के बाद भी अनेक रियासतों में हिन्दू अथवा मुस्लिम शासन था । अतः ऐसी रियासतों में यह अधिनियम लागू नहीं किया गया था, लेकिन शेष ब्रिटिश भारत पर यह अधिनियम प्रभावशील था ।

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