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अभियुक्त की अवैध गिरफ्तारी, निरोध तथा अभिरक्षा में मृत्यु के विरुद्ध संरक्षण का नियम । Protection against Illegal arrest, detention and Custodial Death

अभियुक्त की अवैध गिरफ्तारी , निरोध तथा अभिरक्षा में मृत्यु के विरुद्ध संरक्षण का नियम । Protection against Illegal arrest, detention and Cus...

अभियुक्त की अवैध गिरफ्तारी, निरोध तथा अभिरक्षा में मृत्यु के विरुद्ध संरक्षण का नियम । Protection against Illegal arrest, detention and Custodial Death 


संविधान के अनुच्छेद 21 तथा 22  मे अभियुक्त की अवैध गिरफ्तारी और पुलिस द्वारा प्रताड़ित किये जाने के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार दिए गए है


उच्चतम न्यायालय के डी. के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (D.K. Basu vs State of West Bengal) के वाद में केन्द्रीय तथा राज्य सरकार की अन्वेषण एजेन्सियों को अपराधियों की गिरफ्तारी एवं अभिरक्षा में रखे जाने के बारे में नियम दिए गए है ताकि अभियुक्तों के मानवीय अधिकारों तथा मौलिक अधिकारों का हनन न हो





ये नियम निम्नानुसार हैं


गिरफ्तारी या जाँच करने वाला कर्मचारी अपना नाम सही तथा स्पष्ट रूप से प्रकट करे तथा गिरफ्तारी का विवरण रजिस्टर में दर्ज किया जाए


गिरफ्तारी मेमो दो साक्षियों द्वारा प्रमाणित होना चाहिए, जो गिरफ्तार व्यक्ति के नातेदार या मोहल्ले के दो प्रतिष्ठित व्यक्ति हो सकते हैं


गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को अधिकार होगा कि वह अपने गिरफ्तारी की सूचना अपने किसी नातेदार, परिचित व्यक्ति या हितैषी को दे सके, ताकि उसकी जमानत आदि की व्यवस्था हो सके


गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को यह जानकारी दी जानी चाहिए कि उसकी इच्छानुसार उक्त सूचना उसके परिवार जन, मित्र या हितैषी को दे दी गई है

गिरफ्तारी की सूचना सम्बन्धी डायरी में उस नातेदार या मित्र के नाम का उल्लेख होना चाहिए जिसे सूचना भेजी गई है तथा गिरफ्तारी करने वाले कर्मी का नाम एवं विवरण भी होना चाहिए


गिरफ्तार किया गया व्यक्ति यदि स्वयं का चिकित्सीय परीक्षण कराए जाने की माँग करता है तो पुलिस को ऐसा परीक्षण कराना अनिवार्य है ताकि उस व्यक्ति को कारित चोटों आदि का खुलासा हो सके


राज्य इस हेतु प्रशिक्षित डाक्टरों की एक पेनल तैयार करेगा, जिन्हें चिकित्सा परीक्षण का कार्य सौंपा जा सके


गिरफ्तारी-मेमो सहित अन्य सभी दस्तावेजों की प्रतियाँ सम्बन्धित मजिस्ट्रेट को भेजी जाना अनिवार्य होगा


पूछताछ के दौरान गिरफ्तार व्यक्ति को उसके अभिवक्ता से मिलने की छूट दी जानी चाहिए


सभी जिलों में पुलिस नियन्त्रण केन्द्र स्थापित किये जाने चाहिए

 

इस सम्बन्ध में राज्य ने अपने पुलिस अधिनियमों में भी समुचित प्रावधान रखे हैं ताकि पुलिस अभिरक्षा में गिरफ्तार व्यक्ति के साथ अमानवीय व्यवहार न हो और अभिरक्षा में मृत्यु की दुःखद घटनाएं न हों न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया है कि ये नियम पुलिस तथा जेल प्रशासन के अलावा, केन्द्रीय पुलिस बल (CRPF), सीमा सुरखा बल (BSF) केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF), राजस्व् सतर्कता निदेशालय, प्रवर्तन निदेशालय, तट-रक्षक सेना, केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) गुप्तचर विभाग (CID) यातायात पुलिस (Traffic Police), तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) आदि सभी के प्रति लागू होंगे और इनकी अवहेलना के लिए दोषी अधिकारी या प्राधिकारी को कठोर दण्ड से दण्डित किया जाएगा इन सुरक्षात्मक उपायों के उल्लंघन के कारण पीड़ित व्यक्ति को राज्य द्वारा समुचित प्रतिकर (Compensation) दिये जाने पर भी न्यायालय ने जोर दिया है

 

उच्चतम न्यायालय ने श्रीमती नीलावती बेहरा बनाम उड़ीसा राज्य (Mrs. Neelavati Behera Vs. State of Orissa) के वाद में विनिश्चित किया कि राज्य का यह परम कर्तव्य है कि वह पुलिस हिरासत में रखे गए व्यक्ति तथा जेल में कारावासित कैदियों का संरक्षण करे यदि राज्य सरकारें इस कर्तव्य के निर्वहन में लापरवाही बरतती हैं, तो उसे पीड़ित अभियुक्त या कैदी को प्रतिकर देना होगा

प्रस्तुत प्रकरण में मृतक एक बाईस वर्षीय युवक था, जिसे पुलिस द्वारा किसी अपराध की जाँच के सम्बन्ध में गिरफ्तार करके थाने में बन्द कर दिया गया अगले दिन मृतक की हथकड़ी लगी हुई लाश, जिस पर अनेक चोटें थीं, रेलवे लाइन के किनारे पाई गई मृतक की माँ ने पत्र द्वारा अपने मृत पुत्र की इस संदेहास्पद मृत्यु की सूचना न्यायालय को दी तथा इसे पुलिस हिरासत में कारित मृत्यु का प्रकरण न दर्शाते हुए क्षतिपूर्ति (प्रतिकर) की माँग की

न्यायालय ने पत्र को रिट याचिका मानते हुए प्रकरण की चिकित्सीय जाँच कराई जिसमें यह पाया गया कि मृतक की मृत्यु पुलिस द्वारा उसे मारने-पीटने के कारण हुई थी, जो मृतक के शरीर पर पाई गई चोटों से सिद्ध होता था अतः मृतक की माँ (याचिका कत्री) को उसके युवा पुत्र की अनुमानित भावी आयु तथा 1200/- से 1500/- रु. अनुमानित आय के अनुसार डेढ़ लाख रुपये प्रतिकर के रूप में देने हेतु राज्य को निर्देश दिये।

पुलिस अभिरक्षा में हुई अभियुक्त की मृत्यु के प्रकरणों में प्रतिकर के बारे में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इसके लिए धनीय क्षतिपूर्ति (monetary compensation) ही सबसे युक्तियुक्त उपाय है जो राज्य अपने कर्मचारी के अपकृत्य के लिए प्रतिनिधिक दायित्व के रूप में देने के लिए बाध्य है

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