कृत्य या कृत्य का लोप कब दंडनीय नहीं है । When The Act or Omission of an Act is Not Punishable हमारे पिछले लेख मे आपने यह जाना की कृत...

कृत्य या कृत्य का लोप कब दंडनीय नहीं है । When The Act or Omission of an Act is Not Punishable
हमारे पिछले लेख मे आपने यह जाना की कृत्य या कृत्य का लोप कब दंडनीय है (When The Act or Omission of an Act is Punishable ), पर आज इस लेख मे हम यह जानेंगे की कृत्य या कृत्य का लोप कब दंडनीय नहीं होता है (When The Act or Omission of an Act is Not Punishable) :
कुछ परिस्थितियों में कृत्य के लोप (Omission of The Act) को अपराध नहीं माना जाता है । इसे उदाहरण की सहायता से आसानी से समझा जा सकता है :
“राम” एक भिखारी है और “श्याम” से उसकी मित्रता हैं । अगर “राम” को जीवित रहने के लिए भीख नहीं मिलती तथा “श्याम” , “राम” को खाना न दे और “राम” मर जाए, तो इस दशा में ”श्याम” ने कोई अपराध नहीं किया है ।
इसी प्रकार “राम” एक राहगीर है जो सड़क से चला जा रहा है और एक कुत्ता उसे काटने के लिए दौड़ता है । “श्याम” को यह पता है कि कुत्ता खतरनाक है और वह “राम” को मार डालेगा, फिर भी “श्याम” कुत्ते को नहीं बुलाता है । इस स्थिति में “श्याम” उसी दशा में अपराधी होगा, जब वह कुत्ते का मालिक हो और अगर वह कुत्ते का मालिक नहीं है, तो उसने कोई अपराध नहीं किया है ।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 289 | Indian Penal Code Section 289
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 289 (indian penal code section 289) में यह उल्लेख है कि यदि कोई व्यक्ति अपने पालतू जानवर को जानबूझकर लापरवाही से उचित नियंत्रण में न रखे, जिसके कारण लोगों को खतरा उत्पन्न हो जाए तो उसे छः माह तक के कारावास और एक हजार रुपये तक के अर्थदण्ड, या दोनों से, दण्डित किया जा सकता है ।
किसी भी कृत्य को अपराध मानने के लिए यह आवश्यक है कि वह आपराधिक आशय से किया गया हो । इस प्रकार सद्भावना से या निष्कपट से किये गए कार्य के कारण यदि किसी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की क्षति पहुँचे, तो उसे अपराध नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसमें दुराशय (Mens Rea) का अभाव है ।
उल्लेखनीय है कि "दुराशय" या आपराधिक आशय से किये गए कार्य में व्यक्ति स्वेच्छापूर्वक या यह जानकारी रखते हुए कि यह कार्य बेईमानीयुक्त, कपटपूर्ण तथा हानिकारक है, उसे करता है । उदाहरण के लिए :
हत्या के मामले में हत्यारे का दूषित आशय, बलात्कार के प्रकरण में स्त्री की इच्छा के विरुद्ध अभियुक्त द्वारा सम्भोग के प्रयास में सम्पर्क स्थापित किया जाना, तथा चोरी के अपराध में चोरी करने तथा चुराई गई वस्तु को प्राप्त करने के इरादे को "आपराधिक आशय" कहा जाएगा ।
इसे इस वाद के उदाहरण की सहायता से आसानी से समझा जा सकता है :
शॉ बनाम डी.पी.पी. ।DPP V Smith (1661)
शॉ बनाम डी.पी.पी. (Smith V DPP - 1661) के वाद में अभियुक्त द्वारा 'कॉल गर्ल' की उनके पते सहित एक 'डायरेक्टरी' छापी गई, ताकि जो व्यक्ति अनैतिक लैगिक सम्भोग में रुचि रखते है, उन्हें इन लड़कियों के पास पहुँचने में सुविधा हो । अभियुक्त का तर्क था, कि वेश्यावृत्ति पर प्रतिबन्ध नहीं था, अत: यदि उसने इसमें रुचि रखने वालों के लिए सुविधा उपलब्ध कराई तो इसमें उसका कोई दुराशय नहीं था ।
लोक नीति को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने उसे अश्लीलता फैलाने के लिए दोषी करार दिया ।
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