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अपराध का इतिहास | Crime History

  अपराध का इतिहास | Crime History मानव समाज ( Humane Society ) के प्रारम्भ में समाज में होने वाले बदलाव के साथ-साथ अपरा ध ( Crime ) की संरच...

 


अपराध का इतिहास | Crime History

मानव समाज (Humane Society) के प्रारम्भ में समाज में होने वाले बदलाव के साथ-साथ अपराध (Crime) की संरचना में भी निरन्तर परिवर्तन होते रहे हैं | इंग्लैण्ड (England) में १२वीं-१३वीं शताब्दी तक तो केवल उन्हीं कार्यो को अपराध माना जाता था जो 'राज्य के विरूद्ध' (against the state) या 'ईश्वर के विरूद्ध' (against god) होते थे। आसान भाषा में इसे समझा जाए, तो उस समय देश-द्रोह करना (treason), ईश्वर-निन्दा करना (Blasphemy), बलात्कार करना (Rape) आदि कार्यो को ही अपराध माना जाता था लेकिन 'हत्या' (the killing / Murder) को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया था ।


अपकार क्या है | What is Wrang


प्राचीन समय के क़ानून व्यवस्था में 'अपराध' (Crime) और 'अपकृत्य' (Tort) में कोई अंतर नहीं माना जाता था | इन दोनों को ही 'अपकार' (Wrang) कहा जाता था तथा पीड़ित पक्ष को अपकारित और दोषी पक्ष को अपकारी कहा जाता था । इंग्लैण्ड में १०वीं सदी के पूर्व 'अपराध' (Crime) को ही अपकृत्य माना जाता था क्योंकि सामाजिक बन्धन की तुलना में पारिवारिक बन्धन अधिक मजबूत होते थे | अपकारित पक्ष(पीड़ित पक्ष) और उसके सगे-सम्बन्धी अपकार का बदला स्वयं की शक्ति और बल-प्रयोग द्वारा ले सकते थे। उस समय कानून द्वारा मदद प्राप्त करने का एकमात्र उपाय यह था की स्वयं के बलबूते पर बदला लिया जाए | अपकार या गलत करने वाले त्यक्ति (Wrongdoer) से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह अपकारित व्यक्ति को उचित प्रतिकर या जुर्माना (Compensation) दे और यह जुर्माना अपकृत्य की गम्भीरता और पीड़ित व्यक्ति की सामाजिक स्थिति पर निर्भर करती थी।

अपकारी व्यक्ति (दोषी पक्ष) के द्वारा अपकारित व्यक्ति(पीड़ित पक्ष) को क्षतिपूर्ति करने से मना किये जाने पर कानून द्वारा कोई व्यवस्था नहीं थी | उस स्थिति में अपकारित व्यक्ति (पीड़ित पक्ष) तथा उसके सगे-सम्बन्धियों को यह छूट थी कि वे अपकारी (दोषी पक्ष) से बदला ले सकते थे या अपकारी (दोषी पक्ष) को देश से निष्कासित (expelled from the country) कर जानवर की तरह उसकी मृत्यु दंड दे सकते थें |


बाट का अर्थ क्या है । What is The Meaning of Bot


अपकारी (दोषी पक्ष) के द्वारा अपकारित (पीड़ित पक्ष)को क्षतिपूर्ति के रूप में जो राशि दी जाती थी, उसे बॉट(Bot) कहा जाता था तथा यह राशि चुका दी जाने पर अपकारी (दोषी पक्ष) निर्दोष हो जाता था, मानो कि उसने कोई अपराध (Crime) किया ही न हो । प्राचीन समय में बॉट(Bot) विभिन्न अपकारों(दोष)के लिए अपकारित व्यक्ति(पीड़ित पक्ष) को दी जाती थी ताकी अपराधों की पुनरावृत्ति न हो और अपराधियों को दण्डित किया जा सके ।

जैसे-जैसे सामाजिक प्रगति तथा सभ्यता का विकास होता गया, वैसे-वैसे समाज की अपराधों के प्रति धारणा भी बदलने लगी । अपकारियों (दोषी पक्ष)से निपटने के लिए शासक ने अपराधियों को दण्डित करने का दायित्व स्वयं पर ले लिया तथा अपराधियों को पकड़ने और अपराधों का पता लगाने के लिए पुलिस व्यवस्था प्रारभ की गई, परिणामस्वरूप अब अपराध को पीड़ित व्यक्ति मात्र के विरुद्ध अपकार (दोष) न मानकर राज्य के विरुद्ध किया गया अपकार माना जाने लगा । यही व्यवस्था वर्तमान में विश्व के प्राय: सभी देशों में अपनायी जाने लगी

पर भारत में प्राचीन काल से ही एक व्यव्स्थित अपराधिक न्याय प्रणाली चली आ रही थी, जिसे प्राचीन धर्म-प्रथा “मनुस्मृति” (Manusmriti) के नाम से जाना जाता था । मनुस्मृति (Manusmriti) मे हमला, चोरी, लूट, मानहानि, मिथ्या साक्ष्य, छल, आपराधिक न्यास-भंग तथा बलात्कार को अपराध की कोटि में माना था । अपराध का निर्णय शासक स्वयं करता था । दोषी से वसूल किया गया अर्थंदंड अपकारित व्यक्ति (पीड़ित व्यक्ति) को न देकर राज्य-कोष में जमा कर दिया जाता था । इस प्रकार पीड़ित व्यक्ति को अपकारी (दोषी) से प्रतिकर (जुर्माना) (Penalty) दिये जाने की व्यवस्था पुरातन भारतीय दण्ड विधि में नहीं थी।

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