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धारा 6 में क्या है | Section 6 IPC in Hindi

धारा 6 में क्या है | Section 6 IPC in Hindi संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के समझा जाना इस संहिता में सर्वत्र, अपराध की हर परिभा...

धारा 6 में क्या है | Section 6 IPC in Hindi

संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के समझा जाना


इस संहिता में सर्वत्र, अपराध की हर परिभाषा, हर दण्ड उपबन्ध और हर ऐसी परिभाषा या दण्ड-उपबन्धकार दृष्टान्त, "साधारण अपवाद" शीर्षक वाले अन्तर्विष्ट अपवादों के अध्ययन समझा जाएगा, चाहे उन अपवादों को ऐसी परिभाषा, दण्ड-उपबन्ध या दृष्टान्त में दुहराया न गया हो ।

सामान्य शब्दो मे क, एक पुलिस आफिसर, वारण्ट के बिना, य को, जिसने हत्या की है, पकड़ लेता है । यहाँ क सदोष परिरोध के अपराध का दोषी नहीं है, क्योंकि वह य को पकड़ने के लिए विधि द्वारा आवद्ध था, और इसलिये यह मामला उस साधारण अपवाद के अन्तर्गत आ जाता है, जिसमें यह उपबन्धित है कि "कोई बात अपराध नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो।"

इस संहिता में वर्णित सामान्य अपवादों के उपबन्धों के प्रभाव से सम्बन्धित है । इस धारा का उद्देश्य यह स्पष्ट करता है कि यद्यपि विभिन्न अपराधों की परिभाषा तथा तत्सम्बन्धी दण्ड के प्रावधानों का उल्लेख करते समय प्रत्येक जगह साधारण अपवादों का उल्लेख नहीं है, फिर भी यह देखना आवश्यक होगा क्योंकि ये साधारण अपवाद ही वस्तुतः सम्पूर्ण संहिता को नियंत्रित करते हैं । अभियुक्त द्वारा अपने बचाव में रखे जा सकने वाले सभी अपवादों को एक जगह में एकत्रित कर रखा गया है ताकि विभिन्न अपराधों के उपबन्धों के साथ उनका पुनः उल्लेख कर पुनरावृत्ति के दोष से बचा जा सके तथा संहिता सुबोध बनी रहे । तथापि विशेष परिस्थितियों में कतिपय अपराधों की परिभाषा को उनके अपवादों के अध्यधीन रखा गया है जैसे कि संहिता की धारा 300 तथा 499 आदि ।

दण्ड संहिता की धारा 6 न्यायालयों पर यह दायित्व अधिरोषित करती है कि वे स्वयं विचाराधीन अपराध से सम्बन्धित अपवादों को विचार में लें यदि इसका सम्बन्ध साक्ष्य अधिनियम की धारा 105 के अन्तर्गत विधिक पागलपन (insanity) से है, जो कि धारा 84 में वर्णित एक अपवाद है ।

इस सन्दर्भ में ऋषि केशव सिंह बनाम राज्य का उल्लेख करना उचित होगा जिसमें यह विनिश्चिंत किया गया कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 105 का प्रयोजन देखने के लिए उसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 6 के साथ पढ़ना होगा ।

बुद्धिया देव जी बनाम इमाम जी किसमी के बाद में यह विनिश्चित किया गया कि अपना बचाव प्रस्तुत करते समय अभियुक्त के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह किसी अपवाद को ठीक उसी प्रकार साबित करे जिस प्रकार कि अभियोजन पक्ष को अभियुक्त के विरुद्ध अपना मामला साबित करना होता है । अभियुक्त के लिए तो वे परिस्थितियाँ मात्र बताना पर्याप्त है जिनसे यह प्रबल सम्भावना बन जाए कि मामला संहिता में उल्लिखित किसी सामान्य अपवाद के अन्तर्गत आता है ।

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