धारा 10 क्या है | section 10 IPC In Hindi "पुरुष" "स्त्री" "पुरुष" शब्द किसी भी आयु के मानव नर का द्योत...
धारा 10 क्या है | section 10 IPC In Hindi
"पुरुष" "स्त्री" "पुरुष" शब्द किसी भी आयु के मानव नर का द्योतक है । "स्त्री" शब्द किसी भी आयु की मानव नारी का द्योतक है ।
आशय यह है की इस धारा में प्रयुक्त पदावली "किसी भी आयु का बालक या बालिका को क्रमशः पुरुष या स्त्री माना जाएगा । अत: इस धारा के अधीन “पुरुष” शब्द को स्त्री के विलोम के रूप में प्रयुक्त किया गया है ।
तात्पर्य यह है कि इस धारा के अनुसार संहिता के प्रयोजन के लिए किसी बालिका के जन्म लेते ही उसे 'स्त्री' माना जाएगा क्योंकि यह धारा लिंग को परिभाषित करती है जो केवल पुरुष अथवा स्त्री ही हो सकते हैं चाहे इनकी आयु कुछ भी क्यों न हो ।
इस सन्दर्भ में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णीत पंजाब राज्य बनाम मेजर सिंह (State of Punjab Vs Major Singh) का मामला महत्वपूर्ण है । इस वाद में अभियुक्त के विरुद्ध साढ़े सात माह की आयु के एक बालिका के साथ अभद्र व्यवहार करने का आरोप था । बचाव पक्ष का तर्क था कि जिस अबोध बालिका के साथ अत्याचार किया गया था उसे लज्जा का बोध उत्पन्न नहीं हुआ था अतः उसके शीलभंग का प्रश्न ही नहीं उठता । लेकिन न्यायालय ने विनिश्चित किया कि स्त्री के शील या लज्जा का सार उसका लिंग (sex) है वह किसी भी आयु की हो, यहाँ तक कि अबोध बालिका ही क्यों न हो । यद्यपि शीलभंग के मामले में सम्बन्धित स्त्री की प्रतिक्रिया सुसंगत होती है लेकिन वह प्रत्येक स्थिति में सदैव निर्णायक नहीं होती है । ऐसे मामले में अभियुक्त का सदोष आशय ही निर्णायक तत्व होता है । इस आधार पर अभियुक्त को दण्ड संहिता की धारा 354 के अधीन सिद्धदोष कर दण्डित किया गया ।
इस सन्दर्भ में सम्राट् बनाम तात्या महादेव (Emperor v. Tatya Mahadev) का मामला भी उल्लेखनीय है । इस बाद के तथ्य इस प्रकार थे –
अभियुक्त एक छः वर्ष की बालिका को अपने कमरे में ले गया । उसने बालिका को लिटा दिया तथा स्वयं उसके ऊपर लेट गया । इस पर बालिका जोर से चिल्लाई तथा किसी तरह कमरे से भाग निकली । निचली अदालत ने अभियुक्त को इस कृत्य अन्तर्गत 'साधारण हमले के लिए दोषी ठहराया क्योंकि बालिका इतनी छोटी आयु की थी कि उसमें शील का बोध नहीं था ।
किन्तु बम्बई उच्च न्यायालय ने इस मामले में हुई अपील में अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के अन्तर्गत स्त्री का शील भंग करने के लिए दोषी माना क्योंकि संहिता की धारा 10 के अनुसार वह बालिका 'स्त्री' थी, भले ही उसकी आयु मात्र 6 वर्ष ही क्यों न हो । न्यायालय ने यह भी विनिश्चित किया कि बालिका के पैदा होते ही उसमें शील विद्यमान होता है क्योंकि यह उसे स्त्री लिंग की होने के कारण प्राप्त होता है तथा यह महत्वपूर्ण नहीं है कि बालिका 'शील' के प्रति संवेदनशील है अथवा नहीं ।
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