हत्या करने पर धारा | उत्तर प्रदेश राज्य बनाम अतुल सिंह तथा अन्य | Murder Section IPC उत्तर प्रदेश राज्य बनाम अतुल सिंह तथा अन्य(सन 2009)...
हत्या करने पर धारा | उत्तर प्रदेश राज्य बनाम अतुल सिंह तथा अन्य | Murder Section IPC
उत्तर प्रदेश राज्य बनाम अतुल सिंह तथा अन्य(सन 2009)( State of Uttar Pradesh vs. Atul Singh and others (2009)) की हत्या की घटना दि० 21 नवम्बर, 1998 को बस्ती जिले के आवास कालोनी में हुई जब तीन दुर्वृत्त व्यक्तियों (miscreants) में से एक ने मृतक पर पिस्तौल से गोली दाग दी और तीनों भाग गए । इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी साक्षी आपस में एक ही परिवार के रिश्तेदार थे । विचारण न्यायालय ने इन साक्षियों को विश्वसनीय और आश्वस्तनीय मानते हुए मुख्य अभियुक्त संजय विश्वकर्मा, जिसने पिस्तौल से गोली दागी थी, को धारा 302 और अन्य दो को धारा 34 के साथ पारित धारा 302 के अंतर्गत दंडादिष्ट किया |
इस निर्णय के विरुद्ध अपील में उच्च न्यायालय ने निर्णीत किया कि मृत्यु के नामों का तथा उनके द्वारा प्रयुक्त हथियारों की प्रकृति का उल्लेख न किये जाने मात्र से साक्षियों की विश्वसनीयता संदिग्ध नहीं हो जाती है और न उनकी साक्ष्य इस आधार पर खंडित मानी जा सकती है क्योंकि वे सभी आपस में निकट सम्बन्धी थे । तथापि न्यायालय ने अभिकथन किया कि इस प्रकरण में धारा 34 लागू नहीं होती है, अत: केवल मुख्य अभियुक्त संजय विश्वकर्मा ही हत्या के लिए धारा 302 के अधीन दोषी है तथा अन्य दो अपीलार्थी दोषमुक्त करना उचित होगा ।
उक्त निर्णय के विरुद्ध अपील में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि उच्च न्यायालय द्वारा संजय विश्वकर्मा को छोड़कर शेष दो अभियुक्तों को दोषमुक्त किया जाना न्यायोचित था तथा संजय की कारावास की सजा यथावत् कायम रहेगी ।
इस वाद में धारा 34 के सन्दर्भ में उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित सामान्य मार्गदर्शक सिद्धान्त प्रतिपादित किये –
1 हत्या के प्रकरण में चक्षुदर्शी साक्षियों की साक्ष्य को केवल इस आधार पर अमान्य (discard) नहीं किया जा सकता क्योंकि वे आपस में रिश्तेदार हैं।
2 धारा 34 के अधीन 'सामान्य आशय' साक्ष्य सम्बन्धी एक नियम मात्र है तथा इससे किसी सारभूत अपराध का सृजन नहीं होता है ।
3. प्राय: सामान्य आशय का प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध नहीं होता है इसलिए ऐसा आशय केवल प्रकरण के साबित तथ्यों पर आधारित परिस्थिति से ही अनुमानित (inferred) किया जा सकता है ।
4. धारा 34 'सामान्य आशय' से सम्बन्धित है न कि 'सभी के सामान्य आशय' या 'ऐसा आशय जो सभी का एक है।‘
5 धारा 34 लागू होने के लिए यह साबित किया जाना आवश्यक नहीं है कि अभियुक्त ने कोई प्रकट कृत्य (overt act) किया है ।
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