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नित्यासेन बनाम पश्चिम बंगाल राज्य | उत्तर प्रदेश राज्य बनाम पवित्री देवी | हत्या व दोषसिद्धी का मामला | Nityasen vs. State of West Bengal | State of Uttar Pradesh Vs. Pavitri Devi | murder and conviction case

नित्यासेन बनाम पश्चिम बंगाल राज्य | उत्तर प्रदेश राज्य बनाम पवित्री देवी | हत्या व दोषसिद्धी का मामला | Nityasen vs. State of West Bengal | ...

नित्यासेन बनाम पश्चिम बंगाल राज्य | उत्तर प्रदेश राज्य बनाम पवित्री देवी | हत्या व दोषसिद्धी का मामला | Nityasen vs. State of West Bengal | State of Uttar Pradesh Vs. Pavitri Devi | murder and conviction case


नित्यासेन बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (सन 1978)( Nityasen Vs. State of West Bengal (1978)) के वाद में चार अभियुक्तों में से दो ने तलवारों से तथा दो ने लाठियों से एक व्यक्ति पर इस प्रकार प्रहार किये कि जिसके परिणामस्वरूप उस व्यक्ति की मृत्यु हो सकती थी परन्तु उसे केवल चोटें ही आईं । इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया कि सभी अभियुक्तों की धारा 323/34 के अन्तर्गत दोषसिद्धि वैध है परन्तु यदि उनकी दोषसिद्धि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307/34 के अन्तर्गत 'हत्या के प्रयास' के अपराध के लिए होती, तो उस दशा में यह साबित करने का भार लाठीधारी अभियुक्तों पर होता कि उनका आशय केवल चोट पहुँचाना था न कि हत्या कारित करने का ।

धारा 34 के संदर्भ में उत्तर प्रदेश राज्य बनाम पवित्री देवी (सन 2001)( State of Uttar Pradesh Vs Pavitri Devi (2001)) के प्रकरण का उल्लेख करना भी उचित होगा । अभियोक्त्री पवित्री देवी के पति तथा भाई के साथ किसी रमेश नामक व्यक्ति का जमीन के बारे में कोई विवाद था । घटना के दिन मध्य रात्रि को अभियोक्त्री के पति तथा भाई ने रमेश, उसकी पत्नी एवं बच्चों की कुल्हाड़ी से वार करके हत्या कर दी । वे यह दुष्कृत्य करके सड़क पर खड़े थे उसी समय अभियुक्ता पवित्री देवी भी इन अपराधियों के पास सड़क पर बिना कोई कृत्य किये चुपचाप खड़ी देखी गई । सेशन्स न्यायालय ने अभियोक्त्री को उसके पति एवं भाई के साथ हत्या के आरोप में सिद्ध दोष करते हुए निर्णय दिया कि वह धारा 34 के अधीन सामान्य आशय रखते हुए हत्या के कार्य में हत्यारों की सहभागी थी । इस निर्णय के विरुद्ध पवित्री बाई द्वारा उच्च न्यायालय में अपील दायर की गई । उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने उसकी अपील स्वीकार करते हुए विनिश्चित किया कि केवल अभियोक्त्री का हत्यारों के साथ सड़क पर खड़े पाया जाना मात्र धारा 34 के अन्तर्गत उसका सामान्य आशय सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि न तो उसके पास कोई हथियार था और न वह कोई कृत्य करते हुए देखी गई थी ।

न्यायालय के अनुसार यह सम्भव था कि उसका मकान पास में ही होने के कारण जब उसने मध्य रात्रि को अपने पति व भाई को कुल्हाड़ियों सहित बाहर निकलते देखा तो कौतूहलवश यह देखने के लिए कि वे कहाँ जा रहे हैं, उनके पीछे चलकर सड़क पर आ पहुँची हो ।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सामान्य आशय के लिए व्यक्तियों का अपराध कृत्य को आगे बढ़ाने के लिए आशय होना आवश्यक है जो केवल अभियोक्त्री की सड़क पर हत्यारों के पास उपस्थिति मात्र से सिद्ध हुआ नहीं माना जा सकता ।

अतः उच्च न्यायालय ने अभियोक्त्री को हत्या के अपराध से दोषमुक्त कर दिया । इस निर्णय के विरुद्ध राज्य द्वारा उच्चतम न्यायालय में अपील की जाने पर उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय की पुष्टि करते हुए निर्णय दिया कि अभियोक्वी की सड़क पर उपस्थिति मात्र से यह अनुमान लगाना गलत होगा कि हत्या में उसका सामान्य आशय था । अतः किसी अन्य ठोस सबूत के अभाव में उसे दोषमुक्त किया जाना न्यायोचित था । परिणामस्वरूप राज्य की अपील खारिज करते हुए अभियोक्त्री की दोष मुक्ति उचित ठहराई गई ।

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