इसरार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य हत्या मामला धारा 34/302 | Israr Vs State of Uttar Pradesh Murder Case Section 34/302 इसरार बनाम उत्तर प्रद...
इसरार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य हत्या मामला धारा 34/302 | Israr Vs State of Uttar Pradesh Murder Case Section 34/302
इसरार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (सन 2005)( Israr Vs. State of Uttar Pradesh (2005)) के मामले में अभियुक्त/अपीलार्थी ने मृतक को पीछे से पकड़े रखा और सह-अभियुक्त ने चाकू से प्रहार किए । मृतक की चिल्लाहट सुनकर घटनास्थल पर अन्य व्यक्ति दौड़ कर आ गए । इनके हस्तक्षेप करने पर अभियुक्त व्यक्ति चाकू प्रदर्शित करते हुए भाग गए ।
आहत को अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उसका मृत्युकालिक कथन कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा अभिलिखित किया गया । उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों की साक्ष्य विश्वसनीय है तथा उनकी साय को केवल इस आधार पर व्यक्त (discard) नहीं किया जा सकता है कि वे मृतक के मित्र अथवा रिश्तेदार है । समय से दर्शित होता है कि घटना स्थल पर चन्द्रमा का प्रकाश था साथ ही आस-पास के घरों एवं विद्युत खम्भों से भी प्रकाश आ रहा था । अतः शिनाख्त की असंभाव्यता का अभिवाक् (plea) तर्कसंगत नहीं है । मृत्युकालिक कथन से अभियुक्तों की भूमिकाएँ स्पष्ट रूप से सिद्ध हुई कि अभियुक्त/अपीलार्थी ने मृतक को पकड़े रखा था जिससे वह हिल-डुल न सके तथा सह-अभियुक्त ने मृतक पर चाकू से प्रहार किए, परिणामतः उसकी मृत्यु हो गई ।
उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया कि निःसन्देह ही व्यक्ति सामान्यतः उसी कार्य के लिए दायी होता है । जो वह करता है और इस बात को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 38 सुनिश्चित करती है, लेकिन धारा 34 एवं 35 में यह उपबंधित है कि यदि आपराधिक कार्य सामान्य आशय (common intention) का परिणाम है, तो प्रत्येक व्यक्ति जिसने ऐसे आशय से आपराधिक कार्य किया है सम्पूर्ण अपराध के लिए उत्तरदायी होगा । इस बात को विचार में नहीं लिया जायगा कि इस अपराध कार्य के करने में उसकी क्या भूमिका थी । प्रत्येक व्यक्ति उस कार्य के लिए ठीक उसी प्रकार दायित्वाधीन होगा, मानो कि वह कार्य अकेले उसी ने किया हो । अतः अभियुक्त/अपीलार्थी को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 सहपठित धारा 34 के अधीन दोषसिद्धि उचित थी ।
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