Page Nav

HIDE

Gradient Skin

Gradient_Skin

*

latest

महबूब शाह बनाम सम्रा | Mehboob Shah v. Samra | Section 302/34 IPC

महबूब शाह बनाम सम्रा | Mehboob Shah v. Samra | Section 302/34 IPC सामान्य आशय का होना धारा 34 लागू करने हेतु यह प्रमाणित किया जाना आ...

महबूब शाह बनाम सम्रा | Mehboob Shah v. Samra | Section 302/34 IPC


सामान्य आशय का होना

धारा 34 लागू करने हेतु यह प्रमाणित किया जाना आवश्यक है कि अपराध-कार्य सामान्य आशय की अभिवृद्धि (furtherance) के लिए किया गया था । अतः स्पष्ट है कि अपराध कार्य घटित होने के पहले उसे कारित करने का सामान्य आशय होना आवश्यक है, अर्थात् अपराध कार्य पूर्वरचित योजना के प्रवर्तन में किया गया हो ।

महबूब शाह बनाम सम्रा (1945) (Mehboob Shah v. Samra (1945)) के वाद में प्रीवी कौंसिल ने धारा 34 के अन्तर्गत सामान्य आशय की समीक्षा करते हुए विनिश्चित किया कि अपीलार्थी धारा 34 के साथ पठित धारा 302 के अधीन हत्या का दोषी नहीं था क्योंकि उसके कार्य में सामान्य आशय का अभाव था । इस वाद के तथ्य इस प्रकार थे —

अल्लाह दाद, जो कि मारा गया था, कुछ अन्य व्यक्तियों के साथ नाव में अपने गाँव से सिंधु नदी के उस पार उगे नरकटों (reeds) को काटने के लिए रवाना हुआ । जल प्रवाह की धारा के साथ-साथ लगभग एक मील की दूरी तय करने के बाद उन्होंने वलीशाह के पिता मोहम्मद शाह को नदी के किनारे स्नान करते हुए देखा । मोहम्मद शाह को जब उनसे यह मालूम हुआ कि वे नरकट काटने जा रहे हैं, तो उसने उन्हें अपनी भूमि में उगे नरकट न काटने की चेतावनी दी । परन्तु इस चेतावनी की परवाह न करते हुए अल्लाह दाद ने मोहम्मद शाह की भूमि से भी नरकट काटे तथा वापस लौटने के लिए तैयार हुए ।

जब वे चढ़ाव की तरफ रस्सी खींचकर नाव बढ़ा रहे थे उस समय मोहम्मद शाह के भतीजे गुलाम कासिम शाह ने, जो नदी के किनारे खड़ा था, अपने चाचा की भूमि से काटे हुए नरकट लौटा देने के लिए अल्लाह दाद से कहा । अल्लाह दाद ने इससे इन्कार कर दिया ।

इस पर गुलाम कासिम शाह ने रस्सी पकड़ ली और उसे झपट लेने का प्रयास किया । तत्पश्चात् उसने अल्लाहदाद को धक्का देकर एक छोटे डंडे से उस पर प्रहार किया किंतु प्रहार रस्सी पर लगा और अल्लाहदाद बच गया । अल्लाहदाद ने नाव में पड़े एक 10 फुट लम्बे तथा 6 इंच चौड़े लग्गे को उठाकर उससे गुलाम कासिम शाह पर प्रहार किया । इस पर गुलाम कासिम मदद के लिए चिल्लाया जिसे सुनकर वलीशाह और महबूब शाह घटना स्थल पर आ गए । इन दोनों के हाथों में बंदूकें थी ।

जब अल्लाह दाद और उसके साथी हमीदुल्लाह ने भागने की कोशिश की तो वलीशाह और महबूब शाह उनके सामने आ गए तथा वलीशाह ने हमीदुल्लाह पर गोली चला दी जिससे उसकी तत्काल मृत्यु हो गई ।

इसी समय महबूब शाह ने अल्लाह दाद पर गोली चलाई जिससे उसे गम्भीर क्षति पहुँची । वलीशाह फरार हो जाने के कारण पकड़ा नहीं जा सका, जबकि महबूब शाह तथा गुलाम कासिम शाह के विरुद्ध धारा 302/34 के अन्तर्गत मृत्यु के अपराध के लिए अभियोजन चलाया गया ।

विचारण न्यायालय ने महबूब शाह को हत्या के प्रयास के अपराध के लिए सात वर्ष के सश्रम कारावास से दण्डित किया |

अपील में लाहौर उच्च न्यायालय ने उसे हत्या के अपराध के लिए धारा 302/34 के अन्तर्गत दोषी ठहराया । इस निर्णय के विरुद्ध अपीलार्थी महबूब शाह ने प्रीवी कौसिल में अपील की । अपील स्वीकार करते हुए प्रीवी कौंसिल ने महबूब शाह को निर्दोष मानते हुए उसकी दोषसिद्धि अपास्त कर दी तथा धारा 34 के सन्दर्भ में निम्नलिखित सिद्धान्त प्रतिपादित किये –

1. सामान्य आशय के लिए पूर्व - सहमति या मेल की आवश्यकता होती है, अर्थात् विचारों की समरूपता होना आवश्यक है ।

2. इस धारा के प्रवर्तन के लिए यह साबित किया जाना आवश्यक है कि आरोपित अपराध में शामिल अनेक व्यक्तियों में से किसी ने उन सभी के सामान्य आशय को अग्रसर करने हेतु वह अपराध कार्य कारित किया ।

3. सामान्य आशय के लिए कार्य पूर्व योजनाबद्ध तरीके से किया गया होना चाहिए ।

4. अपराधी के आशय के बारे में प्रत्यक्ष साक्ष्य जुटा पाना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य होता है । अधिकांश मामलों में इसका अनुमान अपराधी के कृत्य, आचरण या अन्य सुसंगत परिस्थितियों के आधार पर ही लगाया जा सकता है ।

5. धारा 34 के सन्दर्भ में 'एक ही आशय' तथा 'सामान्य आशय' में विभेद किया जाना परम आवश्यक है तथा इसकी अनदेखी करने पर गम्भीर अन्याय की स्थिति निर्मित हो सकती है ।

कोई टिप्पणी नहीं