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धारा 32 क्या है | IPC Section 32 | क्या है आईपीसी की धारा 32 | लोप का अर्थ क्या है | what is the meaning of omission

धारा 32 क्या है | IPC Section 32 | क्या है आईपीसी की धारा 32 | लोप का अर्थ क्या है | what is the meaning of omission कार्यों का निर्देश ...

धारा 32 क्या है | IPC Section 32 | क्या है आईपीसी की धारा 32 | लोप का अर्थ क्या है | what is the meaning of omission


कार्यों का निर्देश (instruction of tasks) करने वाले शब्दों के अन्तर्गत अवैध लोप (illegal omissions) आता है जब तक कि सन्दर्भ से तत्प्रतिकूल आशय प्रस्तुत न हो, इस संहिता के हर भाग में किये गये कार्यों का निर्देश करने वाले शब्दों का विस्तार अवैध लोपों पर भी है ।

इस धारा में यह बताया गया है कि दण्ड संहिता में जहाँ कहीं भी कार्य का उल्लेख है, उसमें अवैध लोपों (illegal omissions) का भी समावेश होगा जब तक कि अन्यथा आशयित न हो ।

'कार्य' से तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा स्वेच्छा से किये गए कार्य से है जो कोई न कोई प्रभाव अवश्य उत्पन्न करता है जैसे लिखना, बोलना, चलना-फिरना आदि ।

सामान्यतः किसी व्यक्ति द्वारा कोई कार्य किये जाते समय शारीरिक क्रिया के साथ मस्तिष्क को भी प्रयोग में लाया जाता है ।

दूसरे शब्दों में कार्य प्राय: शारीरिक हलचल तथा मानसिक सोच-विचार का परिणाम होता है लेकिन चूँकि धारा 32 के प्रयोजन के लिए कार्य में अवैध लोप या अकृत भी सम्मिलित है, इसलिए लोप की दशा में कार्य बिना शारीरिक हरकत के भी हो सकता है ।


लोप का अर्थ क्या है | what is the meaning of omission


सामान्यतया लोप से अभिप्राय साशय (जानबूझकर) किसी कार्य को न किये जाने से है जो एक व्यक्ति को उस परिस्थिति में करना चाहिए । लेकिन धारा 32 के सन्दर्भ में केवल वे लोप ही कार्य में समाविष्ट हैं जो अवैध हैं, अर्थात् जिन्हें किया जाना विधि द्वारा अपेक्षित है परन्तु जिसे अभियुक्त द्वारा न किया गया हो ।

इसे लतीफ खान बनाम सम्राट (Latif Khan Vs Samrat) के प्रकरण के तथ्यों से अधिक स्पष्टतः समझा जा सकता है ।

एक पुलिस का सिपाही किसी व्यक्ति को सच्चाई उगलवाने के लिए यातना पहुँचा रहा था जिसे उसका साथी-सिपाही वहाँ पास खड़ा देख रहा था । यहाँ प्रथम सिपाही यातना पहुँचाने के कार्य के लिए दोषी ठहराया गया तथा दूसरा अपने साथी को इस कार्य से रोकने के विधिक कर्त्तव्य में लोप के लिए दोषी माना गया ।

इस प्रकार कतिपय दशाओं में जहाँ कार्य तथा कार्य का अवैध लोप, दोनों ही विद्यमान हों, वहाँ धारा 32 के अर्थ में ये दोनों ही 'कार्य' (act) माने जाएँगे ।

इसका एक अन्य उदाहरण यह है कि यदि कोई व्यक्ति अपने बच्चे को जिसका भरण-पोषण करने के लिए वह विधिक रूप से दायित्वाधीन है, अंशतः भोजन न देकर तथा अंशत: पीटकर साशय मृत्यु कारित करता है, तो वह हत्या के कृत्य के लिए दोषी समझा जाएगा ।

इस संदर्भ में ओम प्रकाश बनाम पंजाब राज्य (Om Prakash Vs. State Of Punjab) का वाद उल्लेखनीय है

जिसमें पति को अपनी पत्नी की हत्या का प्रयास करने के आरोप में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 के अधीन दोषी ठहराया गया था, क्योंकि उसने अपनी पत्नी विमला देवी को कई दिनों तक भोजन नहीं दिया तथा उसे हफ्तों तक रोटी के कुछ टुकड़े देकर घर में बन्द रखा ताकि उसकी मृत्यु हो जाए । एक दिन मौका पाकर पीड़िता ने घर से भाग कर लुधियाना के सिविल अस्पताल की महिला चिकित्सक को अपनी करुण गाथा सुनाई जिसने घटना की रिपोर्ट पुलिस थाने में की ।

न्यायालय ने अभियुक्त को साशय पत्नी की हत्या करने के प्रयास के लिए धारा 307 के अन्तर्गत सिद्धदोष किया । जहाँ एक पुलिस के सिपाही का पुलिस स्टेशन पर उपस्थित रहना कानूनी कर्त्तव्य था, उसके द्वारा यह दलील दी जाना कि घटना के समय वह पुलिस थाने में उपस्थित नहीं था, बचाव के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकेगा क्योंकि वहाँ उपस्थित न रहना उसके द्वारा किया गया अवैध लोप था जिसे धारा 32 के सन्दर्भ में कार्य के अन्तर्गत माना गया है । उल्लेखनीय है कि इस मामले में यदि सिपाही के बजाय कोई अन्य व्यक्ति जैसे गाँव का चौकीदार आदि होता जिसका पुलिस थाने में उपस्थित रहना कानूनी कर्त्तव्य नहीं है, तो उसे अवैध लोप द्वारा दुष्प्रेरण के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता था ।

इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति जो किसी लोक-सेवक को धारा 176 भा.द.सं.के अन्तर्गत सूचना देने या धारा 187 भा.द.सं. के अधीन सहायता करने के हेतु कोई दस्तावेज न्यायालय में प्रस्तुत करने के लिए विधितः बाध्य है, और वह ऐसा करने में लोप करता है, तो उसके विरुद्ध अभियोजन चलाया जाकर उसे दण्डित किया जा सकता है ।

धारा 32 लागू होने के लिए कार्य-लोप का स्वरूप "अवैध" (illegal) होना आवश्यक है । कोई व्यक्ति उस बात को करने के लिए वैध रूप से आबद्ध कहा जाता है, जिसका लोप करना उसके लिए अवैध है।

जहाँ बिजली का करन्ट-युक्त जिन्दा तार आम-स्थल पर खुला तथा असुरक्षित छोड़ दिया जाने के कारण एक तेरह वर्ष के बालक की (उस तार के सम्पर्क में आने के कारण) मृत्यु हो गई हो, तो इस उपेक्षापूर्ण कार्य-लोप के लिए दोषी व्यक्ति को दण्डित किया जाना उचित ठहराया गया ।

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