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धारा 24 क्या है | Section 24 IPC in Hindi

धारा 24 क्या है | Section 24 IPC in Hindi जो कोई व्यक्ति “बेईमानी से” आशय से कोई कार्य करता है कि एक व्यक्ति को सदोष अभिलाभ कारित करें य...

धारा 24 क्या है | Section 24 IPC in Hindi


जो कोई व्यक्ति “बेईमानी से” आशय से कोई कार्य करता है कि एक व्यक्ति को सदोष अभिलाभ कारित करें या अन्य व्यक्ति को सदोष हानि कारित करे, वह उस कार्य को 'बेईमानी से" यह कहा जाता है ।

दण्ड संहिता की धारा 24 में प्रयुक्त शब्द “बेईमानी से” (dishonesty) का अर्थ जनसाधारण में प्रचलित अर्थ से भिन्न है । किसी भी कृत्य को बेईमानी से किया गया तब तक नहीं माना जाएगा जब तक कि इसके परिणामस्वरूप एक व्यक्ति को सदोष अभिलाभ या अन्य को सदोष हानि न हो ।

सदोष अभिलाभ में वस्तु को दोषपूर्वक रखे रहना शामिल है । इसी प्रकार सदोष हानि में किसी व्यक्ति को वस्तु या सम्पत्ति से दोषपूर्ण ढंग से अलग रखना या वंचित रखना शामिल है ।

कोई कृत्य बेईमानी से किया गया कहलाने के लिए आवश्यक नहीं है कि उसमें सदोष अभिलाभ (wrongful gain) तथा सदोष हानि (wrongful loss). दोनों तत्वों को विद्यमान होना चाहिए । यदि कृत्य किसी व्यक्ति को सदोष हानि मात्र कारित करने के लिए किया गया हो, तो भी उसे बेईमानी से किया गया माना जाएगा और इस धारा के प्रावधान लागू होंगे । धारा 24 के लागू होने के लिए यह कदापि आवश्यक नहीं है कि सदोष अभिलाभ स्वयं अभियुक्त को ही हो, वह किसी अन्य को भी हो सकता है ।

अहमद बनाम राज्य (Ahmed Vs State) इसका उत्कृष्ट उदाहरण है । इस वाद में कुछ मुसलमान व्यक्तियों ने एक हिन्दू मंदिर से मूर्तियों को हटाकर जला दिया और बाद में उन्हें नदी में फेंक दिया ।अभियुक्तों की ओर से यह दलील प्रस्तुत की गई कि इस कार्य से उन्हें कोई सदोष अभिलाभ नहीं हुआ था, अत: यह कार्य बेईमानी से किया गया नहीं माना जाना चाहिए । परन्तु न्यायालय ने अभियुक्तों के इस तर्क को अस्वीकार करते हुए उनके कार्य को धारा 24 के अधीन बेईमानी से किया गया माना ।

यहाँ यह उल्लेख कर देना आवश्यक है कि धारा 24 के अन्तर्गत बेईमानी के लिए यह सदैव आवश्यक नहीं है कि कार्य विधि-विरुद्ध ही हो, साधन विधि विरुद्ध होने मात्र से भी कोई कार्य बेईमानीपूर्वक किया गया माना जाएगा |

रामवरन बनाम राज्य (Ramvaran Vs State) के मामले में विनिश्चित किया गया है । इस वाद में एक मुसलमान व्यक्ति गाय को काटने के लिए ले जा रहा था जिसे मार्ग में एक हिन्दू ने बलात् छीन लिया । न्यायालय ने अभियुक्त द्वारा बलपूर्वक की गई इस कार्यवाही को बेईमानीपूर्वक की गई मानते हुए अभियुक्त को दण्डित किया ।

चोरी के अपराध के लिए बेईमानी का आशय होना एक महत्वपूर्ण तत्व है । आशय एक मानसिक तत्व है जो कार्य के तुरन्त प्रभाव को दर्शाता है । चोरी के मामले में बेईमानी आवश्यक तत्व होने के कारण यदि अभियुक्त यह दावा करता है कि कथित चोरी के माल पर उसका हक है, तो न्यायालय को इसका अन्वेषण कर वास्तविक हकदार का पता लगाना चाहिए ।

हरी भुईमाली बनाम राज्य (Hari Bhuimali vs State) के मामले में सेवक को चोरी के लिए अपराधी नहीं माना गया क्योंकि उसने वह कृत्य मालिक के कहने पर किया था और उसे मालिक के बेईमानी के आशय की जानकारी नहीं थी । इस स्थिति में सेवक को चोरी के लिए दोषी ठहराए जाने के लिए यह साबित करना आवश्यक था कि उसे मालिक के वास्तविक बेईमानीपूर्ण आशय की जानकारी थी ।

भारतीय दण्ड संहिता में जिन अपराधों के लिए बेईमानी (dishonestly) का तत्व आवश्यक माना गया है वे हैं

चोरी (धारा 378); उद्दापन (धारा 383); लूट (धारा 390): आपराधिक दुर्विनियोग (धारा 403); आपराधिक न्यास भंग (धारा 405); चुराई गई सम्पत्ति रखना (धारा 411) आदि ।

ये अपराध सम्पत्ति से सम्बन्धित होते हैं । इसके अतिरिक्त धारा 246, 247, 415 तथा 464 के अधीन होने वाले अपराधों में बेईमानी शब्द का प्रयोग 'कपटपूर्वक' शब्द के साथ किया गया है ।

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