धारा 23 क्या है | सदोष अभिलाभ | सदोष हानि | Section 23 IPC | Wrongful Gain | Wrongful Loss | Dhara 23 Kya Hai सदोष अभिलाभ (Wrongful Gai...
धारा 23 क्या है | सदोष अभिलाभ | सदोष हानि | Section 23 IPC | Wrongful Gain | Wrongful Loss | Dhara 23 Kya Hai
सदोष अभिलाभ (Wrongful Gain) विधि-विरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पत्ति का अभिलाभ है, जिसका वैध रूप से हकदार अभिलाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति न हो ।
सदोष हानि (Wrongful Loss) विधि-विरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पत्ति की हानि है, जिसका वैध रूप से हकदार हानि उठाने वाला व्यक्ति हो ।
सदोष अभिलाभ (Wrongful Gain) प्राप्त करना, सदोष हानि उठाना - कोई व्यक्ति सदोष अभिलाभ प्राप्त करता है, यह तब कहा जाता है जब कि वह व्यक्ति सदोष रखे रखता है और तब भी जब कि वह व्यक्ति सदोष अर्जन करता है । कोई व्यक्ति सदोष हानि उठाता है, यह तब कहा जाता है जब कि उसे किसी सम्पत्ति से सदोष अलग रखा जाता है और तब भी जब कि उसे किसी सम्पत्ति से सदोष वंचित किया जाता है ।
इस धारा में चार पदों को परिभाषित किया गया है जिनमें प्रत्येक में सदोष (wrongful) शब्द प्रयुक्त हुआ है सदोष शब्द को संहिता में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है यद्यपि शब्द 'अवैध' (Unlawful) की परिभाषा धारा 43 में दी गई है । साधारणत: सदोष से तात्पर्य है किसी पक्षकार के विधिक अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालना ।
इस धारा के अर्थ में लाभ या हानि सदोष मानी जाने के लिए वह विधि-विरुद्ध साधनों से कारित की गई हो । साधनों को विधि-विरुद्ध उस दशा में माना जाएगा यदि उनका प्रयोग करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध अभियोजन चलाए जाने के लिए उन्हें पर्याप्त आधार माने जा सके।
सदोष अभिलाभ | Wrongful Gain
सदोष अभिलाभ से आशय है -
(1) किसी सम्पत्ति का अभिलाभ
(2) जिसका अभिलाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति वैध रूप से हकदार नहीं है, तथा
(3) ऐसा अभिलाभ विधि-प्राप्त साधनों से प्राप्त किया गया हो ।
सदोष अभिलाभ में सम्पत्ति को सदोष अर्जित करना तथा उसे सदोष रखे रहना, दोनों ही शामिल हैं । दूसरे शब्दों में, केवल दूसरे की सम्पत्ति विधि-विरुद्ध तरीके से लेना ही सदोष अभिलाभ नहीं है । बल्कि किसी व्यक्ति की वैध रूप से ली गई सम्पत्ति को उसे अवैध तरीके से अपने पास रखे रहना भी सदोष अभिलाभ माना जाएगा ।
सदोष हानि | Wrongful Loss
इसी प्रकार सदोष हानि के लिए निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक माना गया है -
(1) किसी सम्पत्ति की हानि
(2) जिस व्यक्ति को सम्पत्ति की हानि हुई हो, वह उसका वैध रूप से हकदार हो; तथा
(3) हानि विधि-विरुद्ध साधनों से कारित होनी चाहिए।
सामान्य अर्थ में सदोष हानि का अर्थ किसी व्यक्ति को अवैध तरीके से उसकी सम्पत्ति से वंचित कर देना है तथा इसमें किसी व्यक्ति की सम्पत्ति अवैध रूप से रखे रहना भी शामिल है ।
सदोष अभिलाभ तथा सदोष हानि, दोनों में ही यह आवश्यक है कि सम्पत्ति का हकदार स्वामी से सम्पत्ति अपहृत हुई हो या उसे अवैध ढंग से सम्पत्ति से वंचित रखा गया हो । अतः जहाँ गिरवीदार (Pledgee) ने गिरवी रखी हुई पगड़ी का उपयोग किया, तो पगड़ी के उपयोग से हुई क्षति को स्वामी की सदोष हानि नहीं माना गया और न इसे गिरवीदार को हुआ सदोष अभिलाभ ही माना गया । किन्तु किसी विधवा के बैलों को उसके मृतक पति द्वारा लिए गए ऋण की वसूली में बलपूर्वक गैर कानूनी ढंग से छीन लिया जाना विधवा को हुई सदोष हानि माना गया है ।
महालिंगेया पुजारी बनाम राज्य (Mahalingaya Pujari Vs State) के वाद में डाकिये (postman) ने एक वी. पी. पार्सल का परिदान पाने वाले के पते पर न करते हुए उसकी रसीद पर स्वयं ही हस्ताक्षर करके पार्सल अपने पास रख ली । न्यायालय ने विनिश्चित किया कि पोस्टमेन द्वारा पार्सल स्वयं रख लेना सदोष अभिलाभ था, क्योंकि पाने वाले के न मिलने की दशा में उसे पार्सल पोस्टमास्टर को लौटा देना चाहिए था ।
जहाँ अभियुक्त ने परिवादी के तालाब में भींगने के लिए रखे हुए जूट को हटा दिया तथा परिवादी को उसे ले जाने को कहा क्योंकि वह (अभियुक्त) सद्भावनापूर्वक यह समझे बैठा था कि वह तालाब के स्वामित्व का हकदार है, यह विनिश्चित किया गया कि परिवादी को सदोष हानि नहीं हुई थी ।
निरसिंहुलू बनाम नागर साहिब (Nirsinghulu Vs Nagar Sahib) के वाद में अभियुक्त ने लोक-मार्ग पर खड़े एक ढाँचे को गिरा दिया क्योंकि इससे मार्ग का अतिक्रमण हो रहा था । न्यायालय ने अभियुक्तों को धारा 23 के अन्तर्गत सदोष हानि के लिए दोषी पाया क्योंकि ढाँचे को स्वयं गिरा देने का कोई विधिक औचित्य नहीं था ।
सम्पत्ति से वंचित रखा जाना
यदि सम्पत्ति के स्वामी को थोड़ी देर के लिए अस्थायी रूप से क्यों न हो, उसकी सम्पत्ति से अलग रखा जाता है ताकि वह उस सम्पत्ति के लाभ से वंचित रहे, तो इसे धारा 23 के अन्तर्गत सदोष हानि माना जाएगा । अतः यदि कोई साहूकार अपने ऋण की अदायगी के लिए दबाव डालने के आशय से किसी ऋणी व्यक्ति की कोई सम्पत्ति बलपूर्वक अपने कब्जे में लेकर उस ऋणी को उसकी सम्पत्ति से वंचित रखता है, तो वह चोरी द्वारा उस ऋणी को सदोष हानि पहुँचाने का दोषी होगा ।
इस धारा के अन्तर्गत सदोष हानि के लिए यह आवश्यक है कि हानि दोषपूर्ण ढंग से कारित की गई हो । अतः यदि नगरपालिका के अधिकारियों ने परिवादी को अनधिकृत रूप से निर्मित ढाँचा हटा देने के लिए सूचना-पत्र भेजा हो तथा परिवादी द्वारा ऐसा न किया जाने पर उन्होंने स्वयं उस ढाँचे को गिरा दिया हो, तो धारा 425 के अन्तर्गत रिष्टि के लिए दोषी नहीं माना गया क्योंकि परिवादी को हुई हानि सदोष नहीं थी तथा नगरपालिका के अधिकारियों द्वारा ढाँचा गिराने का कार्य महाराष्ट्र नगरपालिका अधिनियम की धारा 179 एवं 189 के अन्तर्गत किया गया था और वह वैध था ।
के. पात्रा बनाम राज्य (K. Patra Vs State) वाद में यह विनिश्चित किया गया कि यदि स्वामी को उसकी लापरवाही का सबक सिखाने अथवा क्षणिक समय के लिए मानसिक संत्रास पहुँचाने के लिए उसके माल या कोई सम्पत्ति के कब्जे से अलग अस्थायी रूप से (वंचित) रखा जाकर बिना किसी लाभ प्राप्त किये उसे थोड़े समय बाद लौटा दिया जाता है, तो इस दशा में यह नहीं माना जाएगा कि स्वामी को सदोष हानि हुई है ।
उल्लेखनीय है कि यह आवश्यक नहीं कि सदोष हानि से किसी अन्य को सदोष अभिलाभ हो या सदोष अभिलाभ से किसी अन्य को सदोष हानि पहुँचे । साधारणतया चोरी, न्यासभंग, आपराधिक दुर्विनियोग आदि के अपराधों में सदोष लाभ या सदोष हानि का तत्व विद्यमान रहता है ।
कोई टिप्पणी नहीं