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धारा 21 क्या है | Section 21 IPC in Hindi

धारा 21 क्या है | Section 21 IPC in Hindi “ लोक सेवक (Public Servant)“ शब्द उस व्यक्ति का द्योतक है जो निम्न मे से किसी में आता है, अर्थ...

धारा 21 क्या है | Section 21 IPC in Hindi


“ लोक सेवक (Public Servant)“ शब्द उस व्यक्ति का द्योतक है जो निम्न मे से किसी में आता है, अर्थात्

पहला - विधि अनुकूलन आदेश 1950 द्वारा निरसित

दूसरा - भारत की सेना, नौसेना (Navy) या वायुसेना (Air Force) का हर आयुक्त आफिसर

तीसरा - हर न्यायाधीश जिसके अन्तर्गत ऐसा कोई भी व्यक्ति आता है जो किन्हीं न्यायनिर्णायिक कृत्यों का चाहे स्वयं या व्यक्तियों के किसी निकाय के सदस्य के रूप में निर्वहन करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो

चौथा - न्यायालय का हर आफिसर (जिसके अन्तर्गत समापक, रिसीवर या कमिश्नर आता है) जिसका ऐसे आफिसर के नाते यह कर्त्तव्य हो, कि वह विधि या तथ्य के किसी मामले में अन्वेषण या रिपोर्ट करे, या कोई दस्तावेज बनाये, अधिप्रमाणीकृत करे, या रखे, या किसी सम्पत्ति का भार संभाले या उस सम्पत्ति का व्ययन करे, या किसी न्यायिक आदेशिका का निष्पादन करे, या कोई शपथ ग्रहण कराये या निर्वचन करे, या न्यायालय में व्यवस्था बनाये रखे और हर व्यक्ति, जिसे ऐसे कर्त्तव्यों में से किन्हीं का पालन करने का प्राधिकार न्यायालय द्वारा विशेष रूप से दिया गया हो |

पाँचवा - किसी न्यायालय या लोक सेवक (Court or Public Servant) की सहायता करने वाला हर जूरी सदस्य (Jury Member), असेसर (Assessor) या पंचायत का सदस्य (Member of Panchayat)

छठाँ - हर मध्यस्थ या अन्य व्यक्ति, जिसको किसी न्यायालय द्वारा या किसी अन्य सक्षम लोक प्राधिकारी (Public Authority) द्वारा कोई मामला या विषय, विनिश्चय या रिपोर्ट के लिये निर्देशित किया गया हो |

सातवाँ - हर व्यक्ति जो किसी ऐसे पद को धारण करता हो, जिसके आधार से वह किसी व्यक्ति को परिरोध में करने या रखने के लिए सशक्त हो

आठवाँ - सरकार का हर आफिसर जिसका ऐसे आफिसर के नाते यह कर्त्तव्य हो कि वह अपराधों का निवारण कर, अपराधों की इत्तिला दे, अपराधियों को न्याय के लिये उपस्थित करे, या लोक के स्वास्थ्य, क्षेत्र या सुविधा की संरक्षा करे

नवाँ - हर आफिसर जिसका ऐसे आफिसर के नाते यह कर्त्तव्य हो कि वह सरकार की ओर से किसी सम्पत्ति को ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे या व्यय करे, या सरकार की ओर से कोई सर्वेक्षण, निर्धारण या संविदा करे, या किसी राजस्व आदेशिका का निष्पादन करे, या सरकार के धन सम्बन्धी हितों पर प्रभाव डालने वाले किसी मामले में अन्वेषण या रिपोर्ट करे या सरकार के धन सम्बन्धी हितों से सम्बन्धित किसी दस्तावेज को बनाये, अधिप्रमाणीकृत करे या रखे, या सरकार के धन सम्बन्धी हितों की संरक्षा के लिए किसी विधि के व्यतिक्रम को रोके

दसवाँ - हर आफिसर, जिसका ऐसे आफिसर के नाते यह कर्त्तव्य हो कि वह किसी ग्राम, नगर या जिले के किसी धर्मनिरपेक्ष सामान्य प्रयोजन के लिए किसी सम्पत्ति को ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे, या व्यय करे, कोई सर्वेक्षण या निर्धारण करे, या कोई रेट या कर उद्गृहीत करे, या किसी ग्राम, नगर या जिले के लोगों के अधिकारों के अभिनिश्चयन के लिए कोई दस्तावेज बनाये, अधिप्रमाणीकृत करे या रखे

ग्यारहवाँ - हर व्यक्ति जो कोई ऐसा पद धारण करता हो जिसके आधार से वह निर्वाचक नामावली तैयार करने, प्रकाशित करने, बनाये रखने या पुनरीक्षित करने के लिए या निर्वाचन, या निर्वाचन के किसी भाग को संचालित करने लिए सशक्त हो

बारहवाँ - हर व्यक्ति, जो

(क) सरकार की सेवा या वेतन में हो या किसी लोक कर्तव्य के पालन के लिए सरकार से फीस या कमीशन के रूप में पारिश्रमिक पाता हो ।

(ख) स्थानीय प्राधिकारी की, अथवा केन्द्र, प्रान्त या राज्य के अधिनियम के द्वारा या अधीन स्थापित निगम की अथवा कम्पनी अधिनियम, 1956 (Companies Act, 1956) (1956 का 1) की धारा 617 में यथा परिभाषित सरकारी कम्पनी की, सेवा या वेतन में हो ।

सामान्य शब्दो मे नगरपालिका आयुक्त लोक सेवक है । ऊपर के वर्णनों में से किसी में आने वाले व्यक्ति लोक सेवक हैं, चाहे सरकार द्वारा नियुक्त किये गये हों या नहीं ।

जहाँ कहीं "लोक-सेवक" (Public Servant) शब्द आये हैं, वे उस हर व्यक्ति के सम्बन्ध में समझे जायेंगे जो लोक सेवक ओहदे को वास्तव में धारण किये हुए हों, चाहे उस ओहदे को धारण करने के उसके अधिकार में कैसी ही विधिक त्रुटि हो ।

इस धारा में लोक सेवक को परिभाषित नहीं किया गया है अपितु इसमें उन विभिन्न व्यक्तियों की गणना की गई है जो लोक सेवक कहलाते हैं । साधारणत: लोक सेवक वह व्यक्ति है जो किसी लोक कर्त्तव्य का निर्वहन करता है । अतः स्पष्ट है कि सभी शासकीय कर्मचारी लोक सेवक नहीं होते हैं ।

जी. ए. मोन्टेरियो बनाम अजमेर राज्य (G. A. State of Monterio vs Ajmer State) के वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया कि कोई व्यक्ति लोक सेवक है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि

(i) क्या वह सरकार की सेवा में है अथवा सरकार से वेतन पाता है; तथा

(ii) क्या उसे कोई लोक कर्त्तव्य सौंपा गया है।

रेलवे के स्कूल का अध्यापक जिसे रेलवे द्वारा वेतन दिया जाता है जो कि भारत सरकार का एक विभाग है, इस धारा के अन्तर्गत लोक सेवक माना गया क्योंकि उसे छात्रों को पढ़ाने का लोक-कार्य सौंपा गया था ।

आर. आर. चौधरी तथा एस. गांगुली बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (R.R. Choudhary and S.Ganguly Vs State of Uttar Pradesh) के बाद में उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया कि रेलवे में कार्यरत कर्मचारी धारा 21 के अधीन लोक सेवक की श्रेणी में आते हैं क्योंकि उन्हें रेलवे (केन्द्रीय सरकार) से वेतन प्राप्त होता है । और वे लोक कार्य करते हैं ।


लोक सेवक और सरकारी कर्मचारी में अन्तर


(1) सभी लोक सेवक सरकारी कर्मचारी नहीं होते ।

(2) लोक सेवक को सरकारी वेतन मिलता हो, यह आवश्यक नहीं है लेकिन सरकारी कर्मचारी को सदैव सरकार से वेतन मिलता है ।

(3) सरकारी कर्मचारी की तुलना में लोक सेवक पद अधिक व्यापक है जिसमें सरकारी कर्मचारी भी समाविष्ट है । सरकारी कर्मचारी की परिभाषा पूर्ववर्ती धारा 14 में दी गई है ।

लोक सेवक के अधिकार तथा दायित्व सामान्य नागरिक से कहीं अधिक वृहद स्वरूप के होते है । ऐसे अनेक अपराध हैं जो केवल लोक सेवकों द्वारा ही किये जा सकते हैं, अन्य व्यक्तियों द्वारा नहीं। लोक सेवक द्वारा अपराध कारित किया जाने पर उसे साधारण व्यक्ति की अपेक्षा अधिक कठोर दण्ड दिया जाता है क्योंकि उसे इस पद के कारण कुछ विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं ।

पश्चिम बंगाल राज्य बनाम मनमल भुटोरिया (State of West Bengal Vs Malmal Bhutoria) के बाद में उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया कि लोक-सेवक के विरुद्ध प्रकरण में यह साबित करना आवश्यक होता है कि वह व्यक्ति उस तारीख को जिस दिन कथित अपराध हुआ है, लोक सेवक के रूप में कार्यरत था । अतः उसकी सेवा-निवृत्ति, त्यागपत्र तथा लोक सेवक के पद से पदच्युति उसके अपराध को नहीं मिटा सकेगी ।

फिल्म सेन्सर के केन्द्रीय मंडल के अध्यक्ष, राष्ट्रीयकृत सामान्य बीमा कम्पनी का शाखा प्रबंधक, सहायी वायुसेना का सदस्य, रेल-डिब्बे विभाग का खलासी जिसे रेलवे कार्य-प्रबन्धक के कार्यालय में रेलवे पास जारी करने का कार्य सौंपा गया था, तथा राज्य का मुख्यमंत्री आदि को इस धारा के अनुसार लोक सेवक माना गया है ।

उच्चतम न्यायालय ने रमेश बालकृष्ण कुलकर्णी बनाम महाराष्ट्र राज्य (Ramesh Balkrishna Kulkarni v State of Maharashtra) के वाद में यह विनिश्चित किया कि नगर निगम का पार्षद धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक नहीं है क्योंकि न तो उसे सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है या वेतन ही दिया जाता है और न वह अपने कार्य सरकारी नियमों तथा विनियमों के अनुपालन में करता है ।

उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु राज्य बनाम टी. थुलासिंगम (State of Tamil Nadu v. T. Thulasingam) के बाद में यह अभिनिर्धारित किया है कि “ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम ” के उद्देश्य के लिए नगरपालिका परिषद् अथवा नगरपालिका निगम का सदस्य लोक सेवक नहीं है ।

यदि किसी लोक सेवक को निलम्बित किया गया हो, तो धारा 21 के अनुसार निलम्बन की अवधि में उसकी लोक सेवक प्रास्थिति समाप्त नहीं हो जाती है । जहाँ सरकारी विज्ञप्ति द्वारा किसी मंत्री को जिला सलाहकार परिषद की अध्यक्षता का भार सौंपा गया हो, तो इस कर्त्तव्य के निर्वहन के दौरान उस मंत्री को लोक सेवक माना जाएगा।

एस. एस. धनोआ बनाम दिल्ली नगरपालिका (S. S. Dhanoa Vs Municipality of Delhi) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चत किया कि जहाँ कोई भारतीय प्रशासनिक सेवा का सदस्य किसी सहकारी समिति जैसे सुपर बाजार, जो कि सहकारी समिति के अन्तर्गत पंजीकृत हो, में प्रतिनियुक्ति पर कार्य कर रहा हो, तो उसे दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के सन्दर्भ में लोक सेवक नहीं माना जाएगा क्योंकि उक्त अवधि में न तो वह सरकार की सेवा में था और न सरकार से वेतन ही पाता था । न्यायालय ने यह भी निर्णीत किया कि दण्ड संहिता की धारा 21 के खण्ड 12 (ख) में प्रयुक्त शब्द “ निगम “ में सहकारी समिति का समावेश नहीं है ।

बैकिंग विनियम अधिनियम, 1949 (Banking Regulation Act, 1949) की धारा 46 क के अनुसार बैंकिंग कम्पनी के अध्यक्ष, निदेशक, प्रबन्धक तथा अन्य कर्मचारियों को दण्ड संहिता के अध्याय IX के प्रयोजन के लिए लोक सेवक माना गया है । सन् 1970 के उपक्रमों का अधिग्रहण तथा अन्तरण अधिनियम (Acquisition and Transfer of Undertakings Act, 1970) की धारा 14 में भी यही बात दुहराई गई है लेकिन बैंक कर्मचारियों को केवल उपर्युक्त सीमित प्रयोजन के लिए ही लोक सेवक माना गया है । अतः धारा 21 भा. द. स. के अन्तर्गत बैंक कर्मचारी को लोक सेवक नहीं माना गया है । परन्तु बम्बई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य बनाम एल. डब्ल्यू. कनचंद (State of Maharashtra Vs W. Kanchand) के बाद में विनिश्चित किया कि राष्ट्रीयकृत बैंक का कर्मचारी लोक सेवक है क्योंकि बैंक को कम्पनी अधिनियम की धारा 617 के अन्तर्गत एक सरकारी कम्पनी माना गया है ।

उच्चतम न्यायालय ने भारत संघ बनाम अशोक कुमार मित्रा (Union of India Vs Ashok Kumar Mitra) के वाद में विनिश्चित किया कि धारा 21, भा. द. सं. के अन्तर्गत राष्ट्रीयकृत बैंक का कर्मचारी लोक सेवक है तथा भ्रष्टाचार एवं अन्य आरोपों के लिए विशेष न्यायालय द्वारा उसका विचारण (trial) किया जा सकता है । विभिन्न न्यायालयों द्वारा निर्णीत वादों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि विधायक विश्व विद्यालय का परीक्षक, होम गार्ड संगठन के सदस्य आदि को लोक सेवक नहीं माना गया है । लेकिन सरपंच, न्यायाधीश, श्रम आयुक्त "पुलिस अधिकारी" (Police officer) आदि को लोक सेवक माना गया है ।

इसी प्रकार प्रदूषण मंडल (Pollution Board) के अधिकारियों को लोक सेवक माना गया है । उच्चतम न्यायालय द्वारा दिलावर बालू कुराने बनाम महाराष्ट्र राज्य (Dilawar Balu Kurane Vs State of Maharashtra) के वाद में अभिनिर्धारित किया गया है कि शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर द्वारा परीक्षार्थियों को उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन करने हेतु नियुक्त किये गए प्राइवेट कालेज के व्याख्याता को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के प्रयोजनों के लिए लोक सेवक माना जाएगा ।

राम अवतार बनाम बिहार राज्य (Ram Avatar Vs State of Bihar) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया कि राजस्व न्यायालय के अधीन अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने वाला सर्वेक्षक लोक सेवक माना जाएगा । इस प्रकरण में अपीलार्थी को चकबन्दी के प्रयोजनार्थ सर्वेक्षण का कार्य सौंपा गया था, इसलिए वह लोक सेवक था तथा उसके विरुद्ध कदाचार के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 5 (2) के अधीन दांडिक कार्यवाही की जाना न्यायोचित था ।

उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लि. बनाम दिल्ली, (एन. सी. टी. ) तथा अन्य 15 (National Small Industries Corporation Ltd. Vs Delhi, (NCT)) के वाद में विनिश्चित किया कि किसी सरकारी कम्पनी को धारा 21 के अन्तर्गत लोक सेवक नही माना जायेगा लेकिन ऐसी कंपनी का प्रत्येक कर्मचारी लोक सेवक होगा ।

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