Page Nav

HIDE

Gradient Skin

Gradient_Skin

*

latest

धारा 19 क्या है | Section 19 IPC

धारा 19 क्या है | Section 19 IPC “न्यायाधीश” (Judge) शब्द न केवल हर ऐसे व्यक्ति को संकेत करता है, जो पद रूप से न्यायाधीश अभिहित हो, किन्...

धारा 19 क्या है | Section 19 IPC


“न्यायाधीश” (Judge) शब्द न केवल हर ऐसे व्यक्ति को संकेत करता है, जो पद रूप से न्यायाधीश अभिहित हो, किन्तु उस हर व्यक्ति का भी द्योतक है, जो किसी विधि-कार्यवाही में, चाहे वह सिविल हो या दाण्डिक, अन्तिम निर्णय या ऐसा निर्णय जो उसके विरुद्ध अपील न होने पर अन्तिम हो जाये या ऐसा निर्णय, जो किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा पुष्ट किये जाने पर अन्तिम हो जाये, देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो | जो उस व्यक्ति-निकाय में से एक हो, जो व्यक्ति-निकाय ऐसा निर्णय देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो ।

(क) सन् 1859 के अधिनियम 10 के अधीन किसी वाद में अधिकारिता का प्रयोग करने वाला जिलाधीश (कलेक्टर) न्यायाधीश है ।

(ख) किसी आरोप के सम्बन्ध में, जिसके लिए उसे जुर्माना या कारावास का दण्ड देने की शक्ति प्राप्त है, चाहे उसकी अपील होती हो या न होती हो, अधिकारिता का प्रयोग करने वाला मजिस्ट्रेट न्यायाधीश है ।

(ग) मद्रास संहिता के सन् 1816 के विनियम 7 के अधीन वादों का विचारण करने की और अवधारण करने की शक्ति रखने वाली पंचायत का सदस्य न्यायाधीश है ।

(घ) किसी आरोप के सम्बन्ध में, जिनके लिए उसे केवल अन्य न्यायालय को विचारणार्थ सुपुर्द करने की शक्ति प्राप्त है, अधिकारिता का प्रयोग करने वाला मजिस्ट्रेट न्यायाधीश नहीं है ।

इस धारा में “ न्यायाधीश ” की परिभाषा व्यापक अर्थ में की गई है । धारा 19 के अनुसार न्यायाधीश ऐसा कोई भी व्यक्ति हो सकता है जिसे प्राधिकृत रूप से “न्यायाधीश” का पदनाम दिया गया हो तथा इसमें ऐसा प्रत्येक व्यक्ति सम्मिलित है जिसे विधि-द्वारा विधिक कार्यवाही जो दीवानी, आपराधिक अथवा राजस्व स्वरूप की हो सकती है, में निश्चायक निर्णय देने के लिए सक्षम किया गया हो ।



अभय नायडू बनाम कनियानप्पा चेट्ठियार के वाद में विधिक कार्यवाही की व्याख्या के सम्बन्ध में अभिनिर्धारित किया गया कि यह एक ऐसी कार्यवाही है, जो विधि द्वारा निर्धारित अथवा संचालित होती है तथा जिसमें न्यायिक निर्णय दिया जाता है या दिया जाना आवश्यक होता है । इस अर्थ में गाँव का पुलिस पटेल भी “ न्यायाधीश “ कहलाएगा क्योंकि उसे ग्राम पुलिस अधिनियम की धारा 14 के अन्तर्गत उसके समक्ष प्रस्तुत किये गए प्रकरणों में अन्तिम निर्णय देने की अधिकार व शक्ति प्राप्त न्यायाधीश कहलाने के लिए व्यक्ति को विधिक कार्यवाही में विनिश्चित अन्तिम फैसला देने का अधिकार होना अपरिहार्य माना गया है । अतः ऐसा व्यक्ति जिसे मामले में निश्चायक अन्तिम निर्णय देने की विधिक शक्ति नहीं है, “न्यायाधीश” नहीं कहलाएगा । इस अर्थ में सुपुर्दगी मजिस्ट्रेट (Committing Magistrate) को न्यायाधीश नहीं कहा जाएगा जैसा कि इस धारा के दृष्टान्त (घ) में दर्शाया गया है । इसका कारण यह है कि सुपुर्दगी दण्डाधिकारी को निश्चित अन्तिम निर्णय देने की अधिकार-शक्ति नहीं होती है क्योंकि उसका कार्य मामले को केवल सक्षम न्यायालय में विचारण हेतु सुपुर्द करना है । तथापि कुछ परिस्थितियों में मजिस्ट्रेट को भी न्यायाधीश माना जा सकता है, परन्तु प्रस्तुत धारा यह अपेक्षा नहीं करती कि एक न्यायाधीश स्वयं मजिस्ट्रेट बन जाए।

कोई टिप्पणी नहीं