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नौ-अधिकरण अधिकारिता | Admiralty Jurisdiction | High Court Admiralty Jurisdiction Act

  नौ-अधिकरण अधिकारिता | admiralty jurisdiction | High Court  A dmiralty Jurisdiction  Act बीच समुद्र में कारित अपराधों के मामलों की सुनवाई क...

 नौ-अधिकरण अधिकारिता | admiralty jurisdiction | High Court Admiralty Jurisdiction Act


बीच समुद्र में कारित अपराधों के मामलों की सुनवाई करने के अधिकार को नौ-अधिकरण अधिकारिता ( Admiralty Jurisdiction ) कहा जाता है । इस अधिकारिता का मूल आधार यह है कि जहाज एक तैरता हुआ द्वीप है और उसे उस राष्ट्र की भूमि माना जाता है जिसका ध्वज उस पर फहरा रहा हो ।

नौ-अधिकरण अधिकारिता निम्नलिखित अपराधों के प्रति लागू होती है -

(1) भारतीय जहाजों पर कारित अपराध ।

(2) भारत के जलीय प्रदेश में विदेशी जहाजों पर किये गए अपराध तथा

(3) जलदस्युत्ता अर्थात् समुद्री डकैती (Piracy) |

 

नौ अधिकरण अधिकारिता ( Admiralty Jurisdiction ) उन अपराधों के प्रति भी लागू होती है जो बीच-समुद्र के अलावा अन्तर्राष्ट्रीय नदियों अथवा उस स्थान पर किये गए हों, जहाँ किसी दूसरे देश के नगरपालिका के समान अधिकार लागू हो । इस अधिकारिता को लागू करने में इस बात का कोई महत्व नहीं होता कि अपराधी स्वेच्छया भारतीय जहाज पर आया था अथवा उसे भारतीय जहाज पर लाया गया या वहाँ उसकी इच्छा के विरुद्ध रोक कर रखा गया था ।

 

प्रारम्भिक अवस्था में साधारण दण्ड न्यायालयों को नौ अधिकरण अधिकारिता प्राप्त नहीं थी तथा ऐसे मामले केवल नौ अधिकरण न्यायालय द्वारा ही निपटाए जा सकते थे, लेकिन नौ अधिकरण अपराध अधिनियम, 1849 तथा वाणिज्य पोत परिवहन अधिनियम, 1894 के पारित हो जाने के परिणामस्वरूप अब ये अपराध इंग्लैण्ड तथा भारत के साधारण दाण्डिक न्यायालयों द्वारा विचारणीय है ।

 

जल-दस्युता (समुद्री डकैती) को  सभी राष्ट्रों के प्रति अपराध माना गया है । इसमें हिंसक अवरोधों अथवा लूटपाट आदि के कृत्य सम्मिलित हैं । ये कृत्य निजी हितों के लिए निजी जहाजों या निजी वायुयानों में सवार होकर, भय दिखाकर किये जाते है ।

 

जलदस्यु (Pirate) उसे कहते हैं जो सभी राष्ट्रों के जहाजों का शत्रु हो । जलदस्यु की राष्ट्रीयता कुछ भी क्यों न हो, उसके विरुद्ध किसी भी राष्ट्र (देश) में मुकदमा चलाया जा सकता है । जलदस्यता के अपराध के लिए वास्तव में लूट की जाना आवश्यक नहीं है अपितु इसका केवल प्रयास मात्र जलदस्ता का अपराध माना जाएगा ।


यदि एक ही देश के नागरिक बीच समुद्र में एक-दूसरे के प्रति लूटपाट करते हैं, तो इसे जलदस्ता का अपराध माना जाएगा ।


भारत में उच्चतम न्यायालय के अलावा बम्बई, कलकत्ता तथा मद्रास के उच्च न्यायालयों को नौ अधिकरण अधिकारिता प्राप्त है । वर्तमान में जिन अपराधों को नौ अधिकरण की अधिकारिता के अन्तर्गत माना गया है, उन उल्लेख वाणिज्य पोत परिवहन अधिनियम 1958 में किया गया है ।

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