धारा 5 क्या है । IPC Section 5 in Hindi । Dhara 5 कतिपय विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना इस अधिनियम में कोई बात भारत ...
धारा 5 क्या है । IPC Section 5 in Hindi । Dhara 5
कतिपय विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न
डाला जाना
इस अधिनियम में
कोई बात भारत सरकार की सेवा के अफसरों, सैनिकों, नौ-सैनिकों या वायुसैनिकों द्वारा विद्रोह और अभित्यजन को दण्डित
करने वाले किसी अधिनियम के उपबन्धों या किसी विशेष या स्थानीय विधि के उपबन्धों पर
प्रभाव नहीं डालेगी ।

यह धारा इस मूलभूत सिद्धान्त पर आधारित है कि “साधारण कथन विशेष कथन का अल्पीकरण नहीं करते है" जिसका मतलब यह है कि सामान्य रूप से प्रयुक्त शब्द विशेष विधि को निरस्त या निष्प्रभावी नहीं बना सकते है । अतः दण्ड संहिता का कोई भी उपबन्ध किसी ऐसी विशिष्ट या स्थानीय विधि के अधीन निर्मित ऐसे प्रावधानों को प्रभावित नहीं करेगा, जो भारत सरकार की सेवा में कार्यरत प्राधिकारियों, सैनिकों, नौ-सैनिकों, वायु-सैनिकों द्वारा विद्रोह के लिए दण्ड से सम्बन्धित हो ।
इसका
कारण यह है कि सैनिक व्यक्ति थलसेना अधिनियम, 1950; नौसेना अधिनियम, 1957
तथा भारतीय वायुसेना अधिनियम, 1950
द्वारा शासित हैं और उनके सैन्य सम्बन्धी अपराध इन्हीं विशिष्ट विधियों के
अन्तर्गत निपटाये जाते हैं ।
विशिष्ट
विधि | स्थानीय विधि
( Local
Law )
विशिष्ट
या स्थानीय विधि पद ' विशिष्ट विधि ' तथा ' स्थानीय
विधि ' को दण्ड संहिता की क्रमश: धारा 41 तथा 42
में परिभाषित किया गया है ।
धारा
41 के अनुसार विशिष्ट विधि वह है जो किसी विशेष
विषय के प्रति लागू होती है । इसी प्रकार धारा 42 के अनुसार स्थानीय विधि वह है जो भारत के किसी स्थान विशेष के प्रति
लागू होती है । इन दोनों विधियों में से किसी को भी दण्ड संहिता निरस्त, निष्प्रभावी या परिवर्तित नहीं कर सकेगी । कोई
कार्य किसी विशिष्ट विधि या स्थानीय विधि के अन्तर्गत दण्डनीय होने पर भी उसके लिए
दण्ड संहिता के अधीन दण्ड दिया जा सकता है बशर्ते कि वह कृत्य संहिता में परिभाषित
कोई अपराध माना गया हो । परन्तु ऐसी दशा में अभियुक्त को दण्ड संहिता तथा विशिष्ट विधि, दोनों के अन्तर्गत दण्डित नहीं किया जा सकेगा ।
इस स्थिति में अभियुक्त को विशिष्ट विधि के अन्तर्गत दण्डित किया जाना चाहिए
।
इस
धारा द्वारा मार्शल लॉ तथा राज्य के कृत्यों के मामलों में दण्ड संहिता के उपबन्ध
लागू किया
जाना अपवर्जित किया गया है ।
भारत
संघ बनाम आनन्द सिंह विष्ट ( Union of India Vs
Anand Singh Vishta ) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया
है कि यह
धारा संहिता के प्रावधानों को उन समस्त मामलों के लिए अप्रयोज्य (inapplicable) बनाती है जो
सेना अधिनियम, नौसेना अधिनियम तथा वायुसेना अधिनियम के अन्तर्गत समाविष्ट होते हैं
।
रंगून
हाईकोर्ट ने इब्राहीम मामूजी बनाम राज्य
( Ibrahim Mamuji Vs State ) के वाद में यह विनिश्चित किया था कि उच्च
न्यायालय को न्यायालयीन अवमानना के प्रकरण बिना दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 476 या 480 अथवा
दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश XVI नियम
17 के अन्तर्गत कार्यवाही किये बिना
संक्षिप्त कार्यवाही द्वारा सीधे निपटाने की
अधिकारिता प्राप्त है । उल्लेखनीय है कि प्रत्येक उच्च न्यायालय
संविधान के अनुच्छेद 215 के अर्थ में एक अभिलेख न्यायालय (Court of Record) होता है, उसे
स्वयं की अवमानना के लिए अभियुक्त का संक्षिप्त विचारण करके उसे दण्डित करने की
अधिकारिता प्राप्त है
। परन्तु उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय को
छोड़कर अन्य सभी न्यायालय तथा ज्यूडीशियल कमिश्नर के न्यायालय स्वयं की
अवमानना हेतु कार्यवाही केवल भारतीय दण्ड संहिता की
धारा 278
तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता,
1973 की धारा 345 के अधीन ही कर सकते हैं
। सन् 1971 में
न्यायालय अवमानना अधिनियम पारित हो जाने के पश्चात् अब
न्यायालयों द्वारा न्यायालयीन अवमानना की
कार्यवाही उक्त अधिनियम की धारा 10 के
अन्तर्गत की जाती है ।
धारा
५ का अपवाद
यद्यपि
धारा 5 में यह उल्लेख है कि यदि किसी अपराध के लिए
विशिष्ट विधि में दण्डित किये जाने का प्रावधान है, तो साधारणत: उसके लिए उसी विशिष्ट विधि के अन्तर्गत दाण्डिक कार्यवाही
की जाएगी, न
कि दण्ड संहिता के अन्तर्गत । लेकिन इस नियम का एक अपवाद है यदि विशिष्ट विधि में
अपराध के लिए दण्डित किये जाने का प्रावधान है लेकिन उस अपराध के प्रयास के लिए
दाण्डिक प्रावधान नहीं है,
तो ऐसी दशा में अन्य विधि के अन्तर्गत किये गये
अपराध को दण्ड संहिता की धारा 5 से
मुक्त कर धारा 511 के अधीन दण्डित किया जाएगा ।
रामचन्द्र रबीदास उर्फ रतन रबीदास बनाम त्रिपुरा राज्य (Ramchandra Rabidas alias Ratan Rabidas Vs State of Tripura ) के वाद में गोहाटी उच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि सड़क यातायात के नियमों का उल्लंघन करने वाले अपराधी को दण्ड संहिता के अधीन अभियोजित करना धारा 5 द्वारा सुस्थापित विधि के उल्लंघन में तथा विधायी उद्देश्य के विरुद्ध होगा । इसका केवल एक अपवाद यह है कि यदि मोटरयान अधिनियम 1988 में इस हेतु समुचित दण्ड का प्रावधान न हो, तो उस दशा में अपराधी को दण्ड संहिता के अधीन दण्डित किया जा सकेगा ।
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