सामाजिक अपराध की परिभाषा | आर्थिक अपराध कानून | सामाजिक आर्थिक अपराध | Socio Economic Crime | Socio Economic Offences ऐसे अपराध जो स...
सामाजिक अपराध की परिभाषा | आर्थिक अपराध कानून | सामाजिक आर्थिक अपराध | Socio Economic Crime | Socio Economic Offences
ऐसे
अपराध जो समाज पर या भौतिक कल्याण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं या देश की आर्थिक
व्यवस्था को खराब करते हैं और सामान्यत: समाज के मध्यम या प्रतिष्ठित वर्ग के
लोगों द्वारा अपने व्यवसायिक, व्यापारिक या वाणिज्यिक कार्यकलापों के दौरान किए
जाते है । सामाजिक-आर्थिक अपराध कहे जाते हैं
।
सामाजिक
आर्थिक अपराध | Socio Economic Crime
सामाजिक आर्थिक अपराध के प्रमुख लक्षण निम्नानुसार हैं –
ये
अपराध पहले की अपराधों की तुलना में अधिक गम्भीर रूप के होते है केवल
व्यक्ति-विशेष को ही नहीं,
बल्कि पूरे राष्ट्र और उसकी आर्थिक व्यवस्था,
सामाजिक संघटना पर विपरीत प्रभाव डालते हैं ।
इन
अपराधों को करने का आशय व्यक्तिगत हिसा, बैरभाव
या कामुकता न होकर व्यक्ति की लोभी प्रवृत्ति तथा अधिकाधिक धन कमाने की लालसा होती
है ।
इन्हें
कारित करने के लिए प्राय: कपट या धोखाधड़ी का सहारा लिया जाता है न कि बल-प्रयोग
या भावनात्मक ईर्ष्या या द्वेष आदि ।
सामाजिक-आर्थिक
अपराध व्यक्ति की भ्रष्ट मानसिकता की उपज होते हैं जबकि रूढिगत अपराध व्यक्ति के
दुराशय (guilty mind) से उत्पन्न होते हैं ।
साधारणत:
इन अपराधों को करने वालों को लोग घृणा या लांछन (stigma) की दृष्टि से नहीं देखते हैं जबकि रूढिगत अपराध लांछनास्पद होते हैं
और लोग ऐसे अपराधियों से कतराते हैं या बचते है ।
सामाजिक-आर्थिक
अपराध प्राय: समाज के प्रतिष्ठित एवं सम्पन्न लोगों के द्वारा किया जाता है जबकि
रूढ़िगत अपराध किसी भी वर्ग के व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है ।
सामाजिक-आर्थिक
अपराधों का विस्तार | Socio Economic Crime
Scope
ग्लेनवाइल विलियम्स ने घटिया गुणवत्ता की वस्तुओं या उत्पादों को ऊँची कीमत पर बेचना, बिना लाइसेंस के उद्योग चलाना, ट्रेडमार्क या कापीराइट के उल्लंघन द्वारा धन कमाना आदि को सामाजिक-आर्थिक अपराधों की श्रेणी में रखा है ।
सदरलैण्ड
ने
सामाजिक-आर्थिक अपराधों में निम्नलिखित को शामिल किया है इनमे मिथ्या एवं भ्रमात्मक
विज्ञापनों द्वारा अपना माल खपाना या व्यापार करना, कर्मचारियों का शोषण करना, माप-तौल
के मानक नियमों का उल्लंघन,
अपना घटिया माल दूसरी प्रतिष्ठित व्यापारिक
इकाई के नाम पर बेचना, मिलावट, करों
का अपवंचन, वित्तीय आँकड़ों में हेराफेरी, दुर्व्यपदेशन, भ्रष्टाचार,
रिश्वतखोरी, कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, शराब
या नशीले पदार्थों की तस्करी, भूमिगत
अपराधियों को अवैध सेवाएं उपलब्ध कराना, आपराधिक
रेकेट्स, झूठे दावे, ट्रेडमार्क, पेटेंट या कॉपीराइट का उल्लंघन तथा अन्य अनुचित
श्रम एवं व्यापारिक संव्यवहार आदि ।
भारत
में सामाजिक आर्थिक अपराध । Socio Economic In
India
भारत
में सामाजिक-आर्थिक अपराधों में निरन्तर हो रही वृद्धि को ध्यान में रखते हुए यह
अनुभव किया गया कि इनके निवारण के लिए दण्ड संहिता में जो प्रावधान दिए गए है वो अपर्याप्त
हैं, अतः इन अपराधों को रोकने तथा इन पर प्रभावी
नियन्त्रण रखने के लिए विशेष अधिनियम लागू किए गए, जिनमें निम्नलिखित विशेष उल्लेखनीय हैं -
एन.डी.पी.एस.
अधिनियम, 1988 (Narcotic
Drugs & Psychotrophic
Substances
Act, 1988)
भ्रष्टाचार
निवारण अधिनियम, 1988
(The Prevention of Corruption Act)
खाद्य
अपमिश्रण निवारण अधिनियम,
1954 (The Prevention of Food Adulteration
Act)
अनिष्टकर
मादक द्रव्य अधिनियम,
1930 (The Dangerous Drugs Act)
कापी
राइट अधिनियम, 1957 (Copy
Rights Act as amended in 1999)
आवश्यक
वस्तु अधिनियम, 1955 (The
Essential Commodities Act as amended
in 1993)
विदेशी
मुद्रा विनियमन अधिनियम,
1973 (The Foreign Exchange Regulation Act,
1973 now
called FEMA)
विदेशी
मुद्रा संरक्षण और तस्करी निवारण अधिनियम, 1974 (The Conservation of
Foreign
Exchange and Prevention of Smuggling Activities Act)
आयुध
अधिनियम, 1959 (The Arms
Act)
औषधि
(नियन्त्रण) अधिनियम,
1950 (The Drugs Control Act)
निवारक
निरोध अधिनियम, 1980
(Preventive Detention Act)
सूचना
प्रौद्योगिकी अधिनियम,
2000 (Information Technology Act, 2000)
एकाधिकार
निवारण अधिनियम, 1968
(Monopolies Prevention Act now called
the
Competition Act, 2002)
व्यापार
चिह्न अधिनियम (Trade
Mark Act, 1999)
सामाजिक-आर्थिक
अपराधों के लिए दण्ड |
इन
अपराधों की गंभीरता एवं इनके दुष्पभाव को देखते हुए इनके प्रति भारतीय दण्ड संहिता
दुराशय (mens rea) सम्बन्धी सामान्य नियम लागू नहीं होता है, अर्थात् अभियोजक को केवल अपराधी द्वारा किए गए अपराध
को साबित करना होता है तथा स्वयं की निर्दोष साबित करने का भार अभियुक्त पर होता
है ।
सामाजिक-आर्थिक
अपराधियों की स्थिति केवल धन-लोलुपता या ऐश्वर्यमय विलासितापूर्ण जीवन की लालसा से
प्रेरित होकर इन अपराधों को करते हैं; इसलिए
इनके लिए दण्ड के सुधारात्मक तरीके विशेष प्रभावी सिद्ध नहीं होते हैं । इन्हें अपराध
से दूर रखने का एकमात्र उपाय कठोरतम दण्ड से दण्डित करना है । इन्हें भारी आर्थिक
दण्ड देना भी प्रभावकारी नहीं होता है क्योंकि वे इसका भुगतान करके दण्डित होने से
बचने का सरलतम उपाय ढूँढ लेते हैं । अत: इन अपराधों के लिए विभिन्न कानूनों तथा
अधिनियमों में कठोर कारावास के दण्ड के प्रावधान रखें गये हैं ।
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