दुराशय का सिद्धांत । भारतीय दण्ड विधि के अन्तर्गत दुराशय Misdemeanor Examples | Mens Rea in IPC भारतीय दण्ड संहिता में सभी अपराधो...
दुराशय का सिद्धांत । भारतीय दण्ड विधि के अन्तर्गत दुराशय Misdemeanor Examples | Mens Rea in IPC
भारतीय दण्ड संहिता में सभी अपराधों को इस प्रकार परिभाषित करने की कोशिश की गई है कि उनमें प्रत्येक के लिए आवश्यक दुराशय के तत्व शामिल हो सके फिर भी दण्ड संहिता में ऐसे अपराध भी हैं जिनकी परिभाषा में दुराशय प्रकट करने वाले शब्दों उपलब्ध नही है क्योंकि उस अपराध के होने पर अपराधी को दण्डित किया जाता है भले ही उसे करने में उसका दुराशय न रहा हो । उदाहरण के लिए - भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध, देशद्रोह, अपहरण, व्यपहरण आदि का होना ।
इसके ठीक विपरीत कुछ अपराध ऐसे हैं जिनके होने पर अपराधी का दुराशय दर्शाता था, अर्थात् ये अपराध दुराशय के बिना सम्पन्न हो ही नहीं सकते है । उदाहरण के लिए सरकारी सिक्कों या स्टाम्पों का कूटकरण (Counterfeiting of coins and stamps) आदि ।
आन्वयिक दुराशय
विख्यात विधिशास्त्री फ्रीडमन (Friedman) के अनुसार आपराधिक विधि में भी सामजिक परिवर्तनों के साथ-साथ परिवर्तन होते रहते हैं । अत: कुछ कृत्य जो समाज की सुरक्षा के लिए घातक होते हैं, दुराशय के बिना भी दण्डनीय अपराध माने जा सकते हैं, अर्थात, इन अपराधों के लिए अपराधी का दुराशय होना आवश्यक नहीं होता है । इसका कारण यह है कि ऐसे अपराधों में कानून की यह धारणा रहती है कि उनमें आन्वयिक दुराशय शामिल रहता है जो अपराधी पर कठोर दायित्व अधिरोपित करता है ।
इसे एक सामान्य उदाहरण से समझते है : यदि किसी दूध बेचने वाले के दूध में कोई व्यक्ति उसकी जानकारी के बिना पानी मिला देता है जिसके परिणामस्वरूप उस दूध बेचने वाले के विरुद्ध दूध में मिलावट के अपराध का अभियोजन चलता है, तो आन्वयिक दुराशय के सिद्धान्त के आधार पर उसे अपराधी माना जाएगा चाहे भले ही उसका मिलावट करने का आशय न रहा हो या उसे इसकी जानकारी न रही हो ।
परन्तु यदि दूध बेचने वाला व्यक्ति अपने मालिक की ओर से दूध बेचता है और मालिक ने दूध में मिलावट की है जिसकी जानकारी उस नौकर को नहीं हैं, तो उस दशा में नौकर को आन्वयिक दुराशय के अधीन अपराधी नहीं माना जाएगा बल्कि इसका दोष मालिक पर होगा ।
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