आपराधिक दायित्व के निर्धारण का मापदण्ड । The Measure of Criminal Liability दण्ड का मानक तय करते समय न्यायालयों को उन तत्वों पर विचार की आवश्...
आपराधिक दायित्व के निर्धारण का मापदण्ड । The Measure of Criminal Liability
दण्ड का मानक तय करते समय न्यायालयों को उन तत्वों पर विचार की आवश्यकता होती है जिनके आधार पर अभियुक्त को दिए जाने वाले दण्ड की मात्रा निश्चित की जाती है । दण्ड का निर्धारण प्राय: निम्नलिखित तत्वों पर निर्भर करता है -

अपराध
का उद्देश्य | Motive of Crime
अपराध
करने का उद्देश्य जितना अधिक प्रबल होता है, दण्ड
उतना ही अधिक कठोर दिया जाना चाहिए । दण्ड का मुख्य उद्देश्य अपराधकर्त्ता को
आपराधिक कृत्य करने से रोके रखना है ताकि उसके आपराधिक उद्देश्य को समाप्त किया जा
सके । अत: स्वाभाविक है कि उद्देश्य जितना अधिक प्रबल तथा सुनिश्चित होगा, दण्ड भी उतना ही अधिक कठोर होगा । यदि आपराधिक
उद्देश्य अधिक प्रबल न हो और अपराध उत्तेजनावश किया गया हो, तो स्वाभाविक रूप से दण्ड कम कठोर या साधारण
स्वरूप का होगा ।
परन्तु
अग्रेजी शासन काल से चली आ रही दण्ड-व्यवस्था आज भी वैसी ही बनी हुई है जबकि
आपराधिक घटनाओं की प्रकृति एवं स्वरूप समाज के लिए अधिकाधिक घातक होते जा रहे हैं ।
उदाहरणार्थ धारा 510 में किसी व्यक्ति द्वारा लोकस्थान में अवचार (Misconduct in public place by a
drunken person) के
अपराध के लिए 24 घण्टे का कारावास तथा 10 रुपये का जुर्माना या दोनों का प्रावधान
है जो वर्तमान परिस्थिति में अपर्याप्त एवं अर्थहीन है । इसी प्रकार दण्ड संहिता
के विभिन्न अपराधों के लिए देय जुर्माने की राशि 100, 200, 500
या 1000/- रुपये तक ही सीमित रखी जाने के कारण अपराधियों पर इसका कोई विपरीत
प्रभाव नहीं पड़ता और वे अपराध करने में नहीं हिचकिचाते हैं ।
अपराध
का परिणाम (Magnitude
of the offence)
अपराध
का परिणाम जितना अधिक व्यापक अथवा विस्तृत होगा, दण्ड भी उसी मात्रा में अधिक कठोर दिया जाएगा । इस सम्बन्ध में
सामान्य धारणा यह है कि दण्ड हेतु अपराध का मापन अपराधकर्ता को हुए लाभों के आधार
पर किया जाना चाहिए न कि अपराध से पीड़ित (अपकारित) हुए व्यक्ति को हुई क्षति के
आधार पर । अत: कुछ विचारकों का मत है कि केवल उद्देश्य (motive) ही अपराध का मापदण्ड होना चाहिए न कि अपराध का
परिणाम ।
अपराधी का चरित्र (Character of the offender)
अपराधी
के लिए दण्ड निश्चित करते हुए न्यायालय उसके चरित्र तथा पहले की गई अपराध को भी
विचार में लेता है । स्वाभाविक है कि अपराधी का चरित्र जितना ही अधिक दूषित या
खराब होगा, उसे दण्ड भी उतना ही अधिक कठोर दिया जा सकेगा ।
यही कारण है कि आदतन अपराधियों को प्राय: कठोर दण्ड दिया जाता है जबकि
नव-अपराधियों या परिस्थितिवश अपराध करने वाले अपराधियों को अपेक्षाकृत कम दण्ड से
दण्डित किया जाता है । अनेक अपराधी ऐसे होते हैं जो केवल प्रसंगवश अपराध कर बैठते
हैं तथा उनका न तो अपराध करने का उद्देश्य रहता है और न आशय । अतः ऐसी दशा में न्यायालय
इन अपराधियों के पूर्ववृत्तांत को ध्यान में रखते हुए उन्हें केवल छोटे-मोटे दण्ड
से ही दण्डित करते हैं ताकि अपराधी जीवन के दुष्प्रभावों तथा गम्भीर अभ्यस्त
अपराधियों की संगति से बचे रहें ।
सारांश
यह है कि दण्ड विधि मे विभिन्न अपराधों के लिए दण्ड की अधिकतम सीमा निर्धारित की
गई है परन्तु फिर भी अपराधी के लिए कितना या कौन सा दण्ड सुनिश्चित किया जाना
चाहिए, यह
बहुत कुछ न्यायालयीन विवेक पर निर्भर करेगा ।
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