Page Nav

HIDE

Gradient Skin

Gradient_Skin

*

latest

दुराशय की परिभाषा । Definition of Misfortune । Definition of Mens Rea

  दुराशय की परिभाषा । Definition of Misfortune । Definition of Mens Rea दुराशयकी परिभाषा (Definition of Misfortune) के विषय में भारतीय...

 


दुराशय की परिभाषा । Definition of Misfortune । Definition of Mens Rea

दुराशयकी परिभाषा (Definition of Misfortune) के विषय में भारतीय दण्ड विधि की धारा 80 (Indian Penal Code Section 80) का उल्लेख करना आवश्यक है, जिसमें कहा गया है कि "कोई बात अपराध नहीं है, जो दुर्घटना या दुर्भाग्य से हो जाती हो और किसी आपराधिक आशय या ज्ञान के बिना विधिपूर्ण प्रकार से विधिपूर्ण साधनों द्वारा और उचित सतर्कता और सावधानी के साथ विधिपूर्ण कार्य करने में हो जाती है ।"

इसे इस उदाहरण के द्वारा और स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है :

यदि कोई व्यक्ति कुल्हाड़ी से काम का रहा है और अचानक कुल्हाड़ी का धारदार मुख्य भाग निकल कर उछल जाता है और पास खड़े हुए व्यक्ति को चोटिल कर घाव कर देता है, तो ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति अपराधी नहीं माना जाएगा, क्योंकि इसमें उसका कोई दुराशय नहीं था, बल्कि यह तो एक दुर्घटना मात्र थी ।

बिना दुराशय के किए गए कार्य अपराध नहीं

यदि किसी व्यक्ति को नींद में चलने की बीमारी हो तथा वह नींद में चलने की बिमारी के कारण कोई ऐसा कार्य करता है, जो अपराध है, तो भी उसे अपराधी नहीं माना जाएगा, क्योंकि यह कार्य उसने न तो स्वेच्छा से किया है और न दुराशय (Misfortune) से ।

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 के अनुसार

दुराशय (Mens Rea) से आशय यह है की अपराधी के अपराध करने की नीयत और इसमें बिना सोचे-समझे किये गये कार्य का भी समावेश ।

अतः यदि कोई व्यक्ति बिना सोचे-समझे कोई ऐसा कृत्य (कार्य) करता है, जिससे अन्य व्यक्ति को क्षति होती है, तो वह अपराधी माना जाएगा, क्योकि परिणाम की परवाह किये बिना लापरवाही से किए गए कार्य में 'दुराशय' का होना पुरी तरह से माना गया है । भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 (Indian Penal Code Section 80) इसका उदाहरण है जिसमें कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति की लापरवाही से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उसे मानव-वध (Homicide) का अपराध के लिए दंड दिया जाएगा |

इसे इस उदाहरण के द्वारा और स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है :

रसेल ऑन क्राइम्स (Russell on Crime) के अनुसार जहाँ दो मोटर गाड़ियों की स्पर्धात्मक हो रही है और उनमें से एक गाडी किसी राहगीर को कुचल कर निकल जाती है, तो उस गाड़ी के चालक का यह 'अपराध' माना जाएगा, क्योंकि उसने गाड़ी बेतहाशा तेज रफ्तार से चलाकर घोर लापरवाही बरता है ।

किसी व्यक्ति ने कोई कार्य करते समय सावधानी बरती या लापरवाही, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसने उस कार्य से पैदा होने वाले स्वाभाविक परिणामों का विचार किया या नहीं । इसे तय करने के लिए न्यायालयों द्वारा एक मापदण्ड को अपनाया गया है उदाहरण के लिए :  यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति पर चाकू् से हमला करता है, तो यह माना जाएगा कि उसका आशय उस व्यक्ति की मृत्यु करना था और उसे इस परिणाम की पुरी तरह से जानकारी थी । अतः उसका यह तर्क कि उसने केवल चोट पहुँचाने की नीयत से वार किया था न कि मृत्यु करने के आशय से, न्यायालय द्वारा स्वीकार किये जाने योग्य नहीं होगा और वह व्यक्ति मानव-वध के लिए अपराधी माना जाएगा ।

इसे इस उदाहरण के द्वारा और स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है :

डायरेक्टर ऑफ पब्लिक प्रॉसीक्यूशन बनाम स्मिथ (Director of Public Prosecutions v Smith)

डायरेक्टर ऑफ पब्लिक प्रॉसीक्यूशन बनाम स्मिथ(Director of Public Prosecutions v Smith) के वाद में अभियुक्त चुराया गया माल एक कार मे रखकर जाता है और पुलिस के एक सिपाही ने इस कार का पीछा किया । मौका पाकर वह उस गाड़ी पर लटक गया जबकि चालक गाड़ी को अंधाधुंध गति से चलाए जा रहा था । परिणामस्वरूप वह सिपाही कार से नीचे गिर पड़ा तथा दूसरे वाहन की चपेट में आने के कारण उसे गम्भीर चोटें आईं  जिसके कारण बाद में उसकी मृत्यु हो गयी । अभियुक्त (कार चालक) के विरुद्ध 'हत्या' के अपराध का आरोप लगाया गया ।

अभियुक्त का तर्क था कि पुलिस के सिपाही को चोट पहुँचाने या मृत्यु करने का उसका कोई इरादा नहीं था ।

हाउस ऑफ लार्ड्स ने अभियुक्त के कार्य के प्रति उसे 'हत्या' के अपराध के लिए सिद्धदोष किया क्योंकि उस परिस्थिति मे सामान्य व्यक्ति यह अनुमान लगाएगा कि तेज रफ्तार के कारण सिपाही को कार से गिर जाने पर से उसे गम्भीर चोट पहुँच सकती है और वह मर भी सकता है ।

कोई टिप्पणी नहीं