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निगमों का आपराधिक दायित्व | Criminal Liability of Corporations

निगमों का आपराधिक दायित्व | Criminal Liability of Corporations पहले यह माना जाता था कि प्रक्रियात्मक कठिनाइयों के कारण निगमों ( Corporations...


निगमों का आपराधिक दायित्व | Criminal Liability of Corporations

पहले यह माना जाता था कि प्रक्रियात्मक कठिनाइयों के कारण निगमों (Corporations) को अपराध के लिए आरोपित नहीं किया जा सकता है क्योंकि न तो उनका स्वयं का मस्तिष्क है और न ही शरीर है, अत: उन्हें दण्डित किस प्रकार किया जाए परंतु यह अनुभव किया गया कि निगमों को शारीरिक दण्ड नहीं दिया जा सकता, लेकिन दण्ड के रूप में उनसे अर्थदण्ड (fine) अवश्य वसूला जा सकता है अत: सन् 1842 में आर. बनाम विरमिंघन एण्ड ग्लासेस्टर रेल्वे कम्पनी (R. Vs. Wirminghan and Gloucester Railway Company) के वाद में कम्पनी को मार्ग की उचित मरम्मत न करने में व्यतिक्रम के लिए जुर्माने से दण्डित किया गया

 

 इसके बाद प्रतिनिहित दायित्व के सिद्धान्त का विस्तार करते हुए कुछ आपराधिक कृत्यों के लिए कम्पनी के निदेशक, प्रबन्धक या अधिकारियों के आपराधिक कृत्य का दायित्व कम्पनी पर अधिरोपित किया जाने लगा । अत: आई.सी.आर.हॉलेज कम्पनी लि. के वाद में षडयंत्र के अपराध के लिए प्रबन्ध निदेशक के साथ कम्पनी को भी सम्मिलित किया जाना उचित माना गया तथा निदेशक द्वारा किये गए कपटपूर्ण षड्यंत्र के लिए कम्पनी पर आपराधिक दायित्व अधिरोपित किया गया । यहा निगम को कल्पना के आधार पर एक व्यक्ति माना गया है जो अपने एजेन्टों तथा निदेशकों के माध्यम से अपने कार्य सम्पन्न करता है, इसलिए उसे एक काल्पनिक व्यक्तत्व प्राप्त है यही कारण है कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 11 (आईपीसी (IPC) की धारा 11 (Section 11)) में दी गई 'व्यक्ति' की परिभाषा में कोई भी कम्पनी, संगठन या व्यक्ति निकाय भी शामिल है चाहे वह निगमित हो या नहीं । यद्यपि दण्ड विधि के अधीन कम्पनी को व्यक्ति माना गया है फिर भी व्यावहारिक समस्या यह है कि कम्पनी या निगम एक बेजान अदृश्यमान इकाई होने के कारण उसे दण्डित कैसे किया जाए


इस समस्या के समाधान लार्ड एटकिन ने मौसल ब्रदर्स बनाम लंदन एण्ड नार्थ वेस्टर्न रेलवे कम्पनी (Lord Atkin in Mausel Brothers Vs London and North Western Railway Company) के वाद में अपना अभिमत इस प्रकार व्यक्त किया -


“एक बार यह निश्चित हो जाए कि यह मामला उन मामलों में से एक है जहाँ कर्त्ता को अपने सेवकों के कार्यों के लिए दण्ड विधि की दृष्टि से दायी माना जा सकता है, वहाँ आपराधिक मन:स्थिति की कोई आवश्यकता नहीं है और यह माना जा सकता है कि निगम स्वयं कर्त्ता है । इस प्रकार निगम भी ठीक उसी स्थिति में है जैसे कि वह कर्ता जो निगम नहीं है।“

 

“उक्त मामले में कम्पनी को चुंगी बचाने के लिए सामान का जानबूझकर गलत विवरण देने के आरोप में दण्डित किया गया था क्योंकि कम्पनी के एक सेवक का ऐसा आशय पाया गया था ।“

 


इंग्लिश क्रिमिनल जस्टिस एक्ट, 1948 की धारा 33 (3) द्वारा कम्पनी के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही हेतु प्रक्रिया सम्बन्धी कठिनाइयाँ भी दूर कर दी गई । अत: अब दाण्डिक विचारण में निगम का प्रतिनिधित्व उसके प्रतिनिधि द्वारा किया जा सकता है । कम्पनी की अंगहीनता के  विषय को प्रतिपादित करते हुए लेनाईस कैरिंग कम्पनी लि. बनाम एशियाटिक पेट्रोल कम्पनी (Lenais Carrying Company Ltd. Vs Asiatic Petrol Company) के वाद में लार्ड हेल्डेन ने अभिकथन किया था ।


"निगम एक कल्पना है जिसका अपना कोई निजी मन नहीं है और न कोई अपना शरीर है । परिणामस्वरूप इसकी क्रियाशीलता तथा इच्छाशक्ति उस व्यक्ति में पाई जानी चहिए जो किन्हीं कार्यों के लिए उसका अभिकर्त्ता माना जा सकता है, किन्तु जो वास्तव में निगम के निदेशक का मन तथा इच्छा है, अर्थात उसकी स्वयं की आत्मा तथा निगम के व्यक्तित्व का केन्द्र है । निदेशक-मण्डल निगम का मस्तिष्क होता है और उसका शरीर भी तथा निगम के अपने निदेशक-मण्डल के माध्यम से ही कार्य कर सकता है या करता है।"

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