अपराध का अर्थ एवं परिभाषा । Crime Definition भारतीय दण्ड संहिता ( Indian Penal Code ) की धारा 40 ( Section 40 ) के अनुसार ऐसा प्रत्येक क...

अपराध का अर्थ एवं परिभाषा । Crime Definition
भारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 40 (Section 40) के अनुसार ऐसा प्रत्येक कार्य अपराध (Crime) होता है, जिसके लिए दण्ड संहिता (Penal Code) में दण्ड का प्रावधान है ।
इस विषय मे अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग ढंग से “अपराध” की परिभाषा को व्यक्त किया है, जो कुछ इस प्रकार से है :
रसेल (Russel) के विचार से अपराध को परिभाषित करना उस स्थिति में और भी अधिक जटिल समस्या बन जाती है, जब इसे एक निश्चित दायरे में निश्चित शब्दों में बाँधने का प्रयास किया जाता है और यह बताने का प्रयास किया जाता कि किसी तथ्य या कृत्य को अपराध माने जाने के लिए उसमें अमुक-अमुक तत्वों का होना आवश्यक है ।
ब्लेकस्टोन (Blackstone) के अनुसार अपराध एक ऐसा कार्य या कार्य का लोप हैं, जो सार्वजनिक विधि (public method) के उल्लंघन (Violation) में किया गया हो ।
स्टीफेन (Stephen) जो कि ब्लेकस्टोन की रचनाओं के संपादक थे, अपराध को विधिक अधिकार (Legal Right) का ऐसा उल्लंघन मानते हैं जिसमें अपराधिक मन:स्थिति सार्वजनिकता के सन्दर्भ में देखी जा सकती है ।
केनी (Kenny) के अनुसार अपराध उन अवैध कार्यों (illegal actions) को कहते हैं जिनके बदले में दण्ड दिया जाता है और वे क्षमा योग्य नहीं होते, और यदि क्षमा योग्य होते भी हैं तो राज्य के अतिरिक्त अन्य किसी को क्षमा प्रदान करने की अधिकारिता नहीं होती है।
ऑस्टिन(Austin) के अनुसार ऐसा कार्य जिसमें क्षतिग्रस्त पक्ष स्वयं या अपने प्रतिनिधि के माध्यम से क्षतिपूर्ति के लिए वाद प्रस्तुत करना है, अपकृत्य कहलाता है तथा अपकार जिसकी अभियोजन कार्यवाही (prosecution proceedings) शासन या उसके अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा चलाई जाती है, अपराध कहलाता है ।
मिलर (Miller) ने अपराध को परिभाषित करते हुए कहा है कि अपराध वे उल्लंघन युक्त कार्य या अकृत्य हैं जिन्हें विधि समादेशित (law mandated) अथवा निदेशित करती है और इन उल्लंघनों के लिए राज्य के नाम से कार्यवाही करके दोषी व्यक्ति को दण्डित किया जाता है।
क्रास एण्ड जोन्स (Cross and Jones) के अनुसार अपराध जानबूझकर किया गया, विधिक अपकार (legal wrong) है जिसके उपचार के रूप में राज्य द्वारा अपराधी को दण्डित किया जाता है।
इटली के सुविख्यात अपराधशास्त्री रेफेल गेरोफेलो (Raphael Gerofalo) ने अपराध की उपर्युक्त परिभाषाओं को अस्वीकार करते हुए इसकी समाजशास्त्रीय परिभाषा को अधिक उपयुक्त माना है । उनके अनुसार अपराध ऐसा कृत्य है जो मानव की दया (करुणा) तथा न्यायिकता की भावनाओं (sentiments of pity and probity) पर प्रत्याघात करता है ।
टेपन (Tappen) ने अपराध को जानबूझकर किया गया एक ऐसा कृत्य या कृत्य-लोप बताया है जो प्रचलित आपराधिक विधि के उल्लंघन में किया गया हो तथा जिसके लिए अपराधी के पास कोई उचित दलील या बचाव न हो और जो विधि द्वारा दण्डनीय है ।
डॉ० सदरलैंड (Dr. Sutherland) ने अपराध को परिभाषित करते हुए कथन किया है कि यह मानव का ऐसा आचरण है जिससे आपराधिक विधि का उल्लंघन होता है ।
डोनाल्ड टेफ्ट (Donald Taft) के अनुसार, अपराध एक ऐसा कृत्य है जिसका किया जाना दण्ड विधि के अन्तर्गत निषिद्ध है तथा जो किये जाने पर दण्डनीय है।
लैंडिस (Landis) ने अपराध को एक ऐसा कृत्य निरूपित किया है जिसे राज्य ने सामूहिक कल्याण की दृष्टि से हानिकारक घोषित किया है तथा जिसके लिए दण्ड देने हेतु राज्य को शक्ति प्राप्त है ।
प्रसिद्ध अपराधशास्त्री गिलिन (Gillin) के विचार से अपराध एक ऐसा अवैध कार्य है जिसे समाज के लिए हानिकारक माना गया है । अत: वे अपराध को स्थानीय विधि (Local Law) के विरुद्ध किया गया दुराचरण मानते हैं।
हेल्सबरी (Halsbury) के विचार से अपराध एक ऐसा अवैध कृत्य है, जो लोकहित के विरुद्ध है तथा जिसे कारित करने वाले को विधि के अन्तर्गत दण्डित किया जाता है ।
पैटन (Paton) के अनुसार अपराध एक ऐसा कृत्य है जिसके लिए दण्ड का निर्धारण एवं अपराधी को दण्डित करने की प्रक्रिया नियन्त्रित करने की शक्ति राज्य को प्राप्त है । अपराध किसी व्यक्ति द्वारा किया गया ऐसा समाज-विरोधी कृत्य है जिसे राज्य अपनी शक्ति के प्रयोग द्वारा रोकना चाहता है । अपराधी के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही की प्रक्रिया दण्ड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) के अन्तर्गत साक्ष्यों पर आधारित होती है।
इन परिभाषाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अपराध के लिए कम से कम दो तत्वों का होना परम आवश्यक है -
पहला किसी कार्य का किया जाना या किसी कृत्य का लोप होना, तथा दूसरा गलत अर्थ से किया जाना । इन दो तत्वों के साथ एक शर्त वह भी है कि इन कार्यों या अकृत्यों के लिए दण्डविधि में दण्ड का प्रावधान होना ।
कई बार ऐसी भी स्थिति होती है की अपराध ऐसे होते हैं जिन्हें दण्ड विधि निर्देशित नहीं करती बल्कि इनके लिए निर्मित विशिष्ट परिनियमित विधि (statutory law) स्वयं ही उस अपराध को परिभाषित करते हुए उसके लिए दण्ड की सीमा या मात्रा का निर्धारण करती है ।ऐसे अपराधों के विचारण की कार्यवाही दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अन्तर्गत ही की जाती है ।
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